नई दिल्ली : उपभोग में कमी की समस्या से जूझ रही भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने व्यापार घाटा में वृद्धि एक अलग समस्या बनती जा रही है। दुनियाभर में संरक्षणवाद बढ़ने और मध्य-पूर्व के क्षेत्र में तनाव पैदा होने से भारत के व्यापारिक माल का निर्यात प्रभावित हो सकता है।
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फ़िलहाल सुस्त पड़ा है बाजार
सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार भारत में 1988 के बाद से व्यापार घाटे का सिलसिला रहा है, इसलिए यह कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी, क्योंकि भारत में इसके पड़ोसी पूर्वी एशियाई देशों के विपरीत आर्थिक विकास आंतरिक उपभोग पर ज्यादा निर्भर है। लेकिन व्यापार घाटा बढ़ने से इस बार अर्थव्यवस्था पर दोहरा असर पड़ेगा, क्योंकि आंतरिक उपभोग पहले से ही सुस्त पड़ा हुआ है।
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इस कारण हुआ नुकसान
जानकारी के मुताबिक अप्रैल के आंकड़े से लगता है कि यह अंतर और बढ़ेगा। हालांकि 1988 से लेकर 2018 के आंकड़े बताते हैं कि कुल मिलाकर व्यापार संतुलन जीडीपी के प्रतिशत के रूप में काफी कम हुआ है। भारतीय निर्यात संवर्धन परिषद के अध्यक्ष ने बताया, "आंकड़ों से जाहिर है कि व्यापार घाटा मुख्य रूप से मध्यवर्ती उत्पादों व कच्चे माल के आयात के कारण बढ़ा है।" अप्रैल में भारत का निर्यात पिछले साल से 0.64 फीसदी बढ़कर 25.91 अरब डॉलर हो गया। जबकि आयात पिछले साल से 4.48 फीसदी बढ़कर 41.40 अरब डॉलर हो गया।
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