नई दिल्ली: सीमा पर तनाव शुरू हो गया है, इसके साथ ही मिशन 'बॉयकॉट' ने भी रफ़्तार पकड़ ली है। देश के प्रधानमंत्री 'आत्मनिर्भर भारत' और 'लोकल के लिए वोकल' जैसी अपील कर चुके हैं। लेकिन उनकी इस अपील का लोगों ने स्वदेशी के उपयोग के साथ जितना नहीं जोड़ा है, उससे कहीं अधिक विदेशी चीज़ों के बहिष्कार से जोड़ दिया है। चारों तरफ बस एक ही चीज़ सुनाई दे रही है, चीनी उत्पादों का 'बहिष्कार'।
यह पहली बार नहीं है, जब देश में बहिष्कार के स्वर बुलंद हो रहे हैं, ये प्रथा तो देश में वीर सावरकर और गाँधी जी के समय से रही है, उस समय अंग्रेजी उत्पादों की होली जलाई जाती थी, और आज चीनी उत्पादों की। लेकिन इतने आंदोलन चलाने के बाद भी हम वहीँ हैं, क्योंकि हम बॉयकॉट ही करते रह गए और निर्माण ना कर पाए। आज भी पूरे देश में धड़ल्ले से विदेशी उत्पाद बिक रहे हैं, क्योंकि उनके सामने उन्हें टक्कर देने के लिए कोई भारतीय उत्पाद मौजूद ही नहीं है।
भारत इस समय जितना बड़ा बाज़ार है, उतना बड़ा मैनपावर से संपन्न देश भी। अगर हम चाहें तो खुद स्वदेशी चीज़ों का इस्तेमाल करने के साथ ही उनका निर्यात भी कर सकते हैं। लेकिन इस सबके लिए हमें तैयार करने होंगे विकल्प, केवल बहिष्कार से काम नहीं चलेगा, आखिर कब तक हम राष्ट्रवाद की भावना का सहारा लेकर बहिष्कार आंदोलन चलाते रहेंगे और स्वस्थ प्रतिस्पर्धा से दूर भागते रहेंगे। लोगों की भावनाओं का इस्तेमाल करते हुए धंधा बहुत हो चुका, अब हमें निर्माण करना होगा, आत्मनिर्भर बनना होगा।
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