दिसम्बर में योगी नोएडा गए थे, जो नोएडा आता है, वह हार जाता है

दिसम्बर में योगी नोएडा गए थे, जो नोएडा आता है, वह हार जाता है
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लखनऊ: योगी लगातार हार से परेशां और विचलित है, पार्टी भले ही उन्हें स्टार प्रचारक का ख़िताब दे चुकी है. मगर वे अपने ही सूबे में विपक्ष की जीत का कारण बनते जा रहे है. उनका रिपोर्ट कार्ड भी पीएम मोदी की नजर में कुछ खास नहीं रहा था. अब उनको लेकर पार्टी में अटकले तेज हो गई है . सूबे के कई बीजेपी विधायक और नेता पहले ही योगी के विरोध में खड़े दिखाई दे रहे है. एक बड़ा नेता अचानक से यु विफल हो रहा हैं इसके पीछे कई कारण हो सकते है मगर कई लोग इसे नोएडा विजिट से जोड़ रहे है. यूपी के राजनेता के लिए मनहूस माना जानें वाला नोएडा शायद यूपी सीएम योगी आदित्यनाथ की नाकामयाबियों का कारण माना जानें लगा है. 

गौरतलब है कि पिछले साल दिसंबर में योगी आदित्यनाथ ने नोएडा की यात्रा कर इस अंधविश्वास को तोड़ कर बड़ी वाहवाही लूटी थी. मगर अब ये बहादुरी जरा महँगी पड़ती दिख रही है. क्योकि इतिहास तो यही कहता है जो नोएडा आता है, वह हार जाता है. योगी भी इस यात्रा के बाद 4 चुनावों में हार का दंश झेल चुके है. नोएडा के 'मनसूह साये' वाले अंधविश्वास की शुरुआत 1980 के दशक में वीर बहादुर सिंह के कार्यकाल के दौरान हुई थी.

तब नोएडा ट्रिप से लौटने के तुरंत बाद उन्हें पार्टी ने हटा दिया था. इसके बाद से यूपी के मुख्यमंत्रियों ने अपने कार्यकाल के दौरान नोएडा जाने से परहेज करने लगे. राजनाथ सिंह जब यूपी के सीएम बने तो अपने कार्यकाल में वह भी नोएडा नहीं गए.  2011 में  मायावती नोएडा आईं थीं और 2012 में उन्हें समाजवादी पार्टी के हाथों सत्ता से बेदखल होना पड़ा. अखिलेश यादव ने नोएडा और ग्रेटर नोएडा जाने का कभी नाम भी नहीं लिया.

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