दिन रात मेहनत करके आज लोगों के बीच अपनी एक अगल पहचान बना चुका है ये खिलाड़ी

दिन रात मेहनत करके आज लोगों के बीच अपनी एक अगल पहचान बना चुका है ये खिलाड़ी
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वर्ल्ड कप के समय टीम इंडिया के इर्द गिर्द ,माथे पर कुमकुम लगाए हुए एक सांवले रंग के आदमी को बहुत लोगो ने देखा होगा, पर आम सी शक्ल और कद काठी के इस इंसान को देखकर ,कोई अनुमान भी नहीं लगा सकता कि विराट कोहली जैसा खिलाड़ी इनको अपनी कामयाबी का भी कारण कह सकता है। इसी वर्ल्ड कप में रोहित शर्मा ने जब पेट कमिंस जैसे तेज गेंदबाज को घुटने पर बैठ कर स्टेडियम की छत पर छक्का मारा तो कई पुराने दर्शको को वो दौर याद आया होगा जब इंडियन टीम के खिलाड़ियों की सबसे बड़ी कमजोरी तेज गेंदबाजी हुआ करती थी। पर आज हम इंडियन क्रिकेट के ऐसे दौर में है जहा ऋषभ पंत जेम्स एंडरसन जैसे गेंदबाज को रिवर्स स्वीप ऐसे मारते है जैसे दाल चावल का निवाल सा हो। इंडियन बैट्समैन फास्ट बोलिंग के सामने आज अचानक से बेखौफ नही हुई है, बल्कि इसके पीछे एक इंसान की 11 वर्ष की मेहनत का कमाल है। इस आदमी का नाम है डी राघवेंद्र, प्यार से इंडियन प्लेयर्स इन्हे रघु बुलाते है।

कर्नाटक के उत्तर कन्नड़ा जिले के रघु भी करोड़ों भारतीयों की तरह एक क्रिकेटर ही बनना चाहते थे, और करोड़ों भारतीयों की तरह उनके पिता को भी क्रिकेट बर्बादी की तरह ही लगता था। एक दिन ऐसे ही गुस्से में रघु के पिता ने क्रिकेट छोड़ने के लिए लास्ट वार्निंग दी। फिर एक बैग और जेब में 21 रुपए लेकर रघु घर से निकल गए। एक हफ्ते हुबली के बस स्टैंड पर सोए, वहा से जब पोलिस ने भगाना शुरू किया, तो रघु भाग कर एक मंदिर में रहने लगे पर वहा भी ज्यादा दिन ठिकाना बना नही, फिर वहा से निकलकर उन्होंने एक शमशान में अपना ठिकाना बनाया और वही साढ़े 4 वर्ष तक एक टूटे कमरे में रहते रहे। भूखे पेट भी रघु को यही लगता कि अब क्रिकेटर बन कर ही घर की और वापस जाएंगे, पर उनके सपने को भूख तो नही तोड़ पाई पर एक हादसे में उनका दायां हाथ टूट गया। बोलिंग का सपना चकनाचूर होने के बावजूद रघु घर वापस नहीं आए, क्युकी उन्हे अपने सपने, अपने प्यार क्रिकेट के ही आस पास रहना था चाहे जिस रूप में रहे।

इतना ही नहीं हुबली में ही वो दूसरे क्रिकेटर्स को बोलिंग प्रैक्टिस कराने लगे,फिर एक दोस्त के कहने पर बंगलोर गए वहा कर्नाटक क्रिकेट इंस्टीट्यूट में क्रिकेटर्स को प्रैक्टिस कराते हुए ऐसे ही एक दिन वो जवागल श्रीनाथ की निगाह में आ गए। वहा से कर्नाटक रणजी टीम का हिस्सा बने और फिर चिन्नवामी में नेशनल क्रिकेट एकेडमी में बिना किसी तनख्वाह के तीन 4 वर्ष कार्य करते रहे। एनसीए में ही उन्होंने कोचिंग का कोर्स पूरा किया और वहा आने वाले इंडियन क्रिकेटर को प्रैक्टिस कराने लगे, फिर उन पर सचिन की  निगाह पड़ी, सचिन को समझ आया कि प्रैक्टिस कराना रघु के लिए काम नही बल्कि जुनून है। वहा से 2011 में वो भारतीय क्रिकेट के स्टाफ का भाग बन गए। उसी बीच रोबो आर्म नाम का एक इक्विपमेंट से क्रिकेटर्स प्रैक्टिस करते थे, रघु ने इस रोबो आर्म से गेंद फेंकते में बहुत महारत भी अपने नाम कर ली, धीरे धीरे रघु की एक्यूरेसी इतनी सटीक होती चली गई, कि उनकी गेंद 155 की रफ्तार से किसी इंटरनेशनल गेनबाज की तरह प्रैक्टिस पिच पर गिरती थी।

रघु ही वो कारण है जिनकी 145 से 155 की रफ्तार वाली गेंदों पर प्रैक्टिस करके इंडियन खिलाड़ियों को मैच में 135 से 145 की स्पीड वाले बॉलर मीडियम पेसर लगते है। रघु दुनिया के अकेले साइड आर्म बॉलर नही है, पर रघु दुनिया के सबसे पैशनेट और एक्यूरेट साइड आर्म बॉलर बन चुके है, साफ भाषा में कहे तो ये साइड आर्म बोलिंग की विश्व के बुमराह है। रघु प्रैक्टिस पिच पर भी ऐसे ही गेंद फेंकते है जैसे वो अपना बचपन का सपना जी रहे है, ये उनका जुनून ही था कि 2023 के विश्व कप में जब ओस के कारण से खिलाड़ियों के जूते में मिट्टी भर जा रही थी तो रघु एक ब्रश लेकर बाउंड्री के पास खड़े हो गए, और हर ओवर के बाद वो खिलाड़ियों के जूते से मिट्टी साफ करने लगें।रघु से इंसान ये सीख सकता है कि सपने कभी नबी टूटते बस सपने को पूरा करने का एक रास्ता बंद होता है, पर अगर सच में आप अपने सपने से प्यार करते है तो उसे पूरा करने का कोई न कोई रास्ता आप निकाल ही लेंगे।

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