कोरोना वायरस के नए वैरिएंट ओमिक्रॉन ने भारत में भी दस्तक दे दी है और इस दस्तक से सभी हैरान-परेशान है। बीते गुरुवार को स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस कर बताया कि 'कर्नाटक में ओमिक्रॉन के दो मामलों की पुष्टि हुई है।' जी दरअसल यहाँ संक्रमित व्यक्ति की उम्र 66 साल और 46 साल है। वहीं दूसरी तरफ विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि 'ओमिक्रॉन पूरी दुनिया के लिए एक बड़ा ख़तरा है। शुरुआती डेटा से पता चला है कि ओमिक्रॉन में व्यक्ति को संक्रमित करने की क्षमता ज़्यादा है और यह इम्युन सिस्टम पर भी भारी पड़ सकता है।' इसी के साथ हम आपको यह भी बताने जा रहे हैं कि इस ओमिक्रॉन वैरिएंट का पता किस टेस्ट के जरिये चल सकता है?
जी दरअसल विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है, 'ओमिक्रॉन के साथ अच्छी बात यह है कि इसका पता कुछ आरटी-पीसीआर टेस्ट से चल सकता है।' उन्होंने कहा, 'इससे इसका पता लगाने में और फैलने से रोकने में मदद मिल सकती है। कई दूसरे वेरिएंट का पता लगाने के लिए जेनेटिक सिक्वेंस का सहारा लेना पड़ता है।' वहीं दूसरी तरफ कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि 'यह इतना सीधा मामला नहीं है। ज़्यादातर आरटीपीसीआर टेस्ट ओमिक्रॉन और दूसरे वेरिएंट में फ़र्क़ करने में सक्षम नहीं हैं।' इसके अलावा वैज्ञानिकों का यह भी कहना है कि 'आरटीपीसीआर टेस्ट से सिर्फ़ ये पता चलता है कि कोई व्यक्ति कोरोना संक्रमित है या नहीं, न कि वेरिएंट के बारे में पता चलता है। ऐसे में जीनोम सिक्वेंसिंग स्टडी ज़रूरी हो जाती है। लेकिन सभी संक्रमित सैंपल को जीनोम सिक्वेंसिंग के लिए नहीं भेजा जा सकता है। यह प्रक्रिया धीमी, जटिल और महंगी होती है। आरटीसीआर टेस्ट से शरीर में वायरस की मौजूदगी का पता चलता है।'
यह भी कहा जा रहा है कि सार्वजनिक और निजी लैब में किए जाने वाले ज़्यादातर टेस्ट में सार्स कोव- 2 संक्रमण का पता लगाया जा सकता है, लेकिन ये पता नहीं लगाया जा सकता है कि संक्रमित व्यक्ति वायरस के किस वेरिएंट से संक्रमित है। वैज्ञानिकों का कहना है, 'ये टेस्ट वायरस के उस हिस्से को तलाशते हैं, जिनमें ज़्यादा बदलाव नहीं होता है। वेरिएंट को म्युटेशन में अंतर के आधार पर तय किया जाता है। ओमिक्रॉन के मामले में, ये अंतर स्पाइक प्रोटीन के म्युटेशन से जुड़ा है, जो कि वायरस का एक ऐसा हिस्सा होता जो कि बार-बार बदलता है ताकि वह ख़ुद को दवाइयों और रोग-प्रतिरोध कोशिकाओं से बचा सके। इसी वजह से इसकी जाँच करना मुश्किल है। ऐसे में ज़्यादातर टेस्ट ये बताएंगे कि फलां व्यक्ति को कोरोना संक्रमण हुआ है लेकिन वह ये नहीं बताएंगे कि व्यक्ति ओमिक्रॉन वेरिएंट से संक्रमित है।'
वैज्ञानिकों का कहना है, 'इसके लिए डॉक्टर को आपके सैंपल को एक लैब में भेजना होगा जो कि जेनेटिक सीक्वेंसिंग की मदद से ओमिक्रॉन जैसे जेनेटिक सिग्नेचर की तलाश कर सकती है।'
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