जो दलितों से वोटिंग का भी अधिकार छीन ले, क्या वो अंबेडकर समर्थक हो सकता ?

जो दलितों से वोटिंग का भी अधिकार छीन ले, क्या वो अंबेडकर समर्थक हो सकता ?
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नई दिल्ली: इस समय संसद में बाबा साहेब भीम राव अंबेडकर को लेकर विवाद चल रह है, देश पर सबसे लंबे समय तक शासन करने वाली कांग्रेस और मौजूदा सत्ताधारी भाजपा दोनों अपने आप को सबसे बड़ा अंबेडकर समर्थक बता रही हैं। लेकिन क्या अंबेडकर समर्थक होने के लिए सिर्फ उनके नाम की माला जपना या फिर संविधान हाथ में लेकर घूमना काफी है या बाबा साहेब के विचारों को भी आत्मसात करने की जरूरत है ?

बाबा साहेब चाहते थे समानता वाला भारत, बिना भेदभाव वाला भारत, जहाँ सभी को समान अधिकार मिलें । लेकिन क्या आज़ादी के बाद सत्ता के शीर्ष पर बैठने वालों ने इन विचारों का जरा भी मान रखा। बाबा साहेब जिन दलितों के लिए आजीवन संघर्ष करते रहे, सत्ताधारियों ने तो सत्ता मिलते ही उनके मतदान तक का अधिकार छीन लिया और उन्हें केवल मैला ढोने के लिए मजबूर कर दिया। और आज वही लोग जब सत्ता से बाहर हैं, तो अंबेडकर की तस्वीरें लेकर ये दिखाना चाह रहे हैं कि वे ही अंबेडकर के सबसे बड़े अनुयायी हैं, लेकिन वे सब के सब जम्मू कश्मीर में 370 वापस लागू करना चाहते हैं, जबकि अंबेडकर शुरू से इसके विरोधी थे, क्योंकि इससे दलितों का जीवन नरक बनने वाला था। उन्‍होंने तो इस अनुच्छेद का मसौदा तक तैयार करने से इनकार कर दिया था। जिसके बाद शेख अब्‍दुल्‍ला अपने मित्र जवाहरलाल नेहरू के पास पहुंचे और तत्कालीन प्रधानमंत्री के निर्देश पर गोपालस्‍वामी अयंगर ने मसौदा तैयार किया था।

इसके बाद शेख अब्‍दुल्‍ला को अनुच्‍छेद 370 पर लिखे एक पत्र में बाबा साहेब ने कहा था कि ''आप चाहते हैं कि भारत जम्‍मू-कश्‍मीर की सरहदों की रक्षा करे, वहां सड़कों का निर्माण करे, अन्न-जल की आपूर्ति करे, विकास के लिए पैसा दे। लेकिन साथ ही, आप ये चाहते हैं कि कश्‍मीर को भारत के समान अधिकार मिले, पर कश्‍मीर में भारत को सीमित अधिकार मिलें। ऐसा प्रस्‍ताव भारत के साथ विश्‍वासघात होगा, जिसे कानून मंत्री होने के नाते मैं कतई स्‍वीकार नहीं करूंगा।'' पर तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू नहीं माने और अपने दोस्त अब्दुल्ला के लिए ये विश्वासघाती अनुच्छेद संविधान बदलकर उसमे जोड़ दिया। 

जिसका नतीजा ये हुआ कि आज़ादी के बाद से 2024 तक जम्मू कश्मीर के दलित कभी विधानसभा चुनाव में वोट नहीं डाल पाए,  उनके बेटे-बेटियां चाहे कितना भी पढ़ लें, उनके नसीब में सिर्फ शेखों-अब्दुल्लाओं की गन्दगी उठाना ही लिखा था, क्योंकि उन्हें जम्मू कश्मीर का नागरिक ही नहीं माना जाता था। 2019 में जब NDA सरकार ने 370 और 35A को ख़त्म किया, तब जाकर उन दलितों का 72 साल पुराना वनवास ख़त्म हुआ। उन्हें नौकरियों में अवसर मिलने लगे, देश के बाकी हिस्सों में दलितों के लिए जो अधिकार निर्धारित हैं, वो जम्मू कश्मीर के लोगों को भी मिलने लगे। लेकिन इन 70 सालों में एक नेता ऐसा नहीं निकला, जिसने दलितों के मताधिकार के छीन जाने का मुद्दा उठाया हो। देशभर में दलितों के मसीहा बनकर घूमने वाले नेताओं और उनके वोट के बल पर सत्ता के शीर्ष पर पहुँचने वाले नेताओं ने इस पर एक बेहद मोती चादर ढांक रखी थी, ताकि देश के अन्य दलितों को पता ही ना चल सके कि जम्मू कश्मीर में उनके समाज के लोग किस दशा में रह रहे हैं। 

आज भी कांग्रेस के बड़े नेता दिग्विजय सिंह यही कहते हैं कि हमारी सरकार आई, तो 370 बहाल करेंगे, वहीं उनके पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी संसद में संविधान की कॉपी लहराते हुए बाबा साहेब का समर्थक होने का दावा करते हैं। कांग्रेस शुरू से 370 हटाने के विरोध में रही है, इसमें कोई दो राय नहीं कि वो अगर केंद्र की सत्ता में आई, तो इसे वापस लागू भी कर सकती है और दलितों का शोषण दफर शुरू हो सकता है लेकिन, ऐसा कैसा बाबा साहेब का समर्थक जो उनके अनुयायियों के अधिकार ही छीन ले ? राहुल गांधी की कांग्रेस उसी नेशनल कांफ्रेंस (NC) के साथ जम्मू कश्मीर की सत्ता में है, जिसने 370 वापस लागू करने, जेल में बंद आतंकियों को कानूनी मदद देने, पाकिस्तान के साथ बातचीत शुरू करने जैसे विवादित वादे अपने घोषणापत्र में कर रखे हैं। क्या यही बाबा साहेब के विचार हैं ? इस साल हुए चुनाव में पहली बार जम्मू कश्मीर में दलित संदाय के लोगों ने वोट डाला है, उन्हें अब अहसास हुआ है कि वे भी भारत का हिस्सा हैं और वे इससे खुश हैं। अब ये देश की जनता को तय करना है कि सिर्फ अंबेडकर-अंबेडकर जपकर दलितों के वोट पाने वाले नेता अंबेडकर के सच्चे अनुयायी हैं, या फिर वो, जो अंबेडकर के पथ पर चलकर दलितों के लिए काम कर रहे हैं। 

 


   

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