नई दिल्ली: भारत के सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया, जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि सरकार सभी निजी संपत्तियों को सार्वजनिक हित के लिए अधिग्रहित नहीं कर सकती है। इस मामले में अदालत ने 1978 के एक उच्च न्यायालय के फैसले को पलट दिया, जिसमें कहा गया था कि सामुदायिक हित के लिए राज्य किसी भी निजी संपत्ति का अधिग्रहण कर सकता है।
संविधान के आर्टिकल 39(b) का हवाला देते हुए, सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की बेंच ने यह निर्णय दिया। बेंच में से 7 जजों ने बहुमत से यह स्पष्ट किया कि हर निजी संपत्ति को सामुदायिक हित के लिए अधिग्रहित नहीं किया जा सकता। अदालत ने यह भी कहा कि हालांकि सरकार को सार्वजनिक हित के मामलों में समीक्षा का अधिकार है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वह किसी भी संपत्ति का अधिग्रहण कर सकती है।
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व में बेंच में शामिल जजों में जस्टिस ऋषिकेश रॉय, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस राजेश बिंदल, जस्टिस एससी शर्मा और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह ने इस विचार का समर्थन किया। वहीं, जस्टिस सुधांशु धूलिया और जस्टिस बीवी नागरत्ना ने अलग राय रखी।
इस फैसले से यह स्पष्ट होता है कि सरकारी अधिग्रहण की प्रक्रिया में पारदर्शिता और निजी संपत्ति के अधिकारों का सम्मान करना आवश्यक है। इस निर्णय से भविष्य में संपत्ति के अधिग्रहण के मामलों में न केवल कानूनी दिशा-निर्देश प्राप्त होंगे, बल्कि यह निजी और सार्वजनिक हितों के बीच संतुलन स्थापित करने में भी सहायक होगा।
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