सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को दिल्ली-एनसीआर में बढ़ते वायु प्रदूषण के मसले पर कड़ी नाराजगी जाहिर की। कोर्ट ने कहा कि लोगों को स्वच्छ हवा का अधिकार न मिलना, उनके मौलिक अधिकार का उल्लंघन है, जो कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत आता है।
जस्टिस अभय एस. ओका, अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने वायु गुणवत्ता के मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि केंद्र और राज्य सरकारों को इस मुद्दे पर जवाब देना होगा कि वे लोगों के अधिकार की सुरक्षा कैसे सुनिश्चित करेंगे। कोर्ट ने वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (CAQM) द्वारा पराली जलाने पर सख्त कार्रवाई न करने पर भी नाराजगी जताई, विशेष रूप से पंजाब और हरियाणा की सरकारों को फटकार लगाई।
सुप्रीम कोर्ट ने आयोग को कारण बताओ नोटिस जारी करने की बजाए अधिक सख्त कार्रवाई करने की सलाह दी। कोर्ट ने पर्यावरण संरक्षण अधिनियम (EPA) में किए गए संशोधनों की भी आलोचना की, यह कहते हुए कि अब यह कानून दंतहीन हो गया है और अधिकारियों के पास इसे सख्ती से लागू करने के लिए प्रभावी अधिकार नहीं बचे हैं।
कोर्ट ने केंद्र सरकार से सवाल किया कि उन्होंने अधिनियम को मजबूत बनाने के बजाय कमजोर क्यों कर दिया। जस्टिस ओका ने कहा कि धारा-15, जो 1986 के अधिनियम को लागू करने का प्रावधान करती थी, संशोधनों के बाद बेअसर हो गई है। मामले की सुनवाई के दौरान हरियाणा और पंजाब के मुख्य सचिव मौजूद थे, जबकि आयोग की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्य भाटी ने प्रतिनिधित्व किया।
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