नई दिल्ली: देश की सबसे बड़ी अदालत ने शुक्रवार को कहा कि पहली नजर में अर्नब गोस्वामी और दो अन्य के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने की खातिर आवश्यक तथ्य साबित नहीं होते हैं. अदालत ने शिकायत में इन तीनों के खिलाफ लगाए गए आरोप और कानूनी प्रावधानों के बीच 'विलग संबंध' को नोटिस नहीं करने के लिए बंबई उच्च न्यायालय की तीखी आलोचना की है.
शीर्ष अदालत ने 2018 के आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में अर्नब गोस्वामी और दो अन्य की अंतरिम जमानत की मियाद बढ़ाने संबंधी फैसले में ये टिप्पणियां कीं. न्यायमूर्ति धनंजय वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति इन्दिरा बनर्जी की बेंच ने कहा कि जब राज्य सरकार की ज्यादती में किसी नागरिक को मनमाने तरीके से उसकी स्वतंत्रता से वंचित किया जाता है तो हाई कोर्ट को अपने अधिकार का इस्तेमाल करने से खुद को रोकना नहीं चाहिए. इन मामलों में पहली नजर में FIR के आंकलन से भारतीय दंड संहिता की धारा 306 के तहत ख़ुदकुशी के लिए उकसाने के अपराध के लिए अनिवार्य पहलू साबित नहीं होते हैं.
अदालत ने कहा कि, "अपीलककर्ता भारत के रहने वाले हैं और जांच या मुकदमे के दौरान उनके फरार होने का खतरा नहीं है. सबूतों या गवाहों से किसी किस्म की छेड़छाड़ की आशंका नहीं है. इन पहलुओं को ध्यान में रखते हुए ही 11 नवंबर 2020 के आदेश में अपीलकर्ताओं को जमानत पर रिहा कर दिया गया."
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