देश ही सबसे बेहतरीन जांच एजेंसी सीबीआई में इन दिनों घमासान चल रहा है। सीबीआई में नंबर 1 और नंबर 2 के बीच चल रही लड़ाई अब सबके सामने आ गई है। सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा ने स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना के खिलाफ दो दिन पहले ही भ्रष्टाचार का मामला दर्ज किया था। इसके बाद अस्थाना ने वर्मा के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए सीवीसी और कैबिनेट सचिव को पत्र लिखकर सीबीआई निदेशक के बारे में कई बातें सार्वजनिक कर दीं। इन दोनों की कलह को देखते हुए भारत सरकार ने मंगलवार देर रात सीबीआई निदेशक को बदल दिया और राकेश अस्थाना व आलोक वर्मा दोनों को छुट्टी पर भेज दिया। इसके साथ ही सीबीआई के 13 बड़े अफसरों का तबादला भी कर दिया।
देश की सर्वश्रेष्ठ जांच एजेंसी में इस तरह की तकरार पहली बार देखी गई है। यूं तो सीबीआई पर सरकार का तोता होने या सरकार के पक्ष में काम करने को लेकर आरोप लग चुके हैं, लेकिन इन सबके बावजूद लोगों के बीच में इस एजेंसी को लेकर एक भरोसा कायम है। जब भी कोई पेंचीदा मामला सामने आता है या फिर कोई ऐसा हादसा होता है, जिसको लेकर लोगों के मन में संदेह हो, तो अक्सर उस मामले की जांच सीबीआई से कराने की मांग उठती है। कई बार हमारी न्यायपालिका भी पेंचीदा मामलों की जांच सीबीआई को सौंप देती है। सीबीआई ने भी कई पेंचीदा मामलों को अपनी सूझ—बूझ से सुलझाया है फिर चाहे वह भवरी देवी हत्याकांड हो या फिर आरुषि तलवार मामला या फिर मुजफ्फरपुर रेप केस जैसे तमाम मामलों में सीबीआई ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हुए पीड़ितों को न्याय दिलवाया है।
सीबीआई को लेकर लोगों के मन में इस भरोसे के बीच सीबीआई की यह रार रोड़ा डालती नजर आ रही है। सीबीआई में इस समय जो चल रहा है और जिस तरह से सरकार को इस मामले में दखल देना पड़ रहा है, उससे यह सवाल खड़ा हो जाता है कि जांच एजेंसी में नंबर 1 और नंबर 2 के बीच की इस लड़ाई का क्या सीबीआई की साख पर असर पड़ेगा? यहां सवाल यह भी है कि लोगों के बीच इस एजेंसी को लेकर जो भरोसा है क्या वह इस मामले से टूट जाएगा? क्या अब लोग सीबीआई जांच की मांग उतनी ही जोर—शोर से रखेंगे जैसे वह पहले रखते थे?
इस समय जांच एजेंसी जिस दौर से गुजर रही है, उसका नतीजा क्या होगा या इस रार का परिणाम क्या निकलेगा? यह कह पाना अभी मुश्किल है। हालांकि इतना जरूर है कि सीबीआई के भीतर का यह संग्राम इस एजेंसी की साख को कहीं न कहीं प्रभावित तो जरूर करेगा।
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