नई दिल्ली : केंद्र सरकार लाल बत्ती कल्चर को एक तय सीमा के दायरे में लाने का प्रयास कर रही है। इस मामले में केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने अपनी एक रिपोर्ट प्रधानमंत्री कार्यालय को भेज दी है। इस रिपोर्ट में लाल बत्ती को लेकर अपनाई जाने वाली प्रक्रिया, मंत्रालयों के साथ की गई चर्चा और न्यायिक सलाह मशवरा को अपनी रिपोर्ट में शामिल किया है। माना जा रहा है कि सरकार अपने प्रयासों से लालबत्ती कल्चर को सीमित करना चाहती है।
गौरतलब है कि सितंबर वर्ष 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक निर्णय में कहा था कि लाल बत्ती का सीमित उपयोग होना चाहिए। लालबत्ती समेत पीली बत्ती का उपयोग हमेशा ही चर्चा में रहा है। जहां पंजाब राज्य में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व वाली सरकार ने अपनी पहली कैबिनेट बैठक में लाल, पीली नीली बत्तियों के आधिकारिक वाहनों से हटाए जाने के निर्णय को मान लिया था। मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने कहा था कि राज्य से वीआईपी कल्चर को समाप्त करने के लिए उन्होंने वाहनों से बत्तियां हटाने का निर्णय लिया है।
दूसरी ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक दिल्ली के सेना चिकित्सालय में उपचार ले रहे एक जवान को देखने के लिए बिना लाल बत्ती वाले वाहन में सवार होकर पहुंचे थे। इतना ही नहीं जब बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना वाजेद भारत आई थीं तो उनके स्वागत के लिए भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिना किसी ट्रैफिक प्रतिबंध के विमानतल पहुंचे थे। अब केंद्र सरकार लाल और पीली बत्तियों के प्रयोग को लेकर मशविरा करने में लगी है।
अभी केंद्रीय मोटर व्हिकल एक्ट 1889 के नियम के अनुसार वाहनों पर बत्ती लगाने के अधिकार इस तरह से विभाजित हैं।
लाल बत्ती फ्लैशर के साथ
राष्ट्रपति, उप राष्ट्रपति, पूर्व राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, भारत के चीफ जस्टिस, लोकसभा स्पीकर, कैबिनेट मंत्री, हाई कोर्टों के मुख्य न्यायाधीश, पूर्व प्रधानमंत्री, नेता विपक्ष, राज्यों के मुख्यमंत्री.
लाल बत्ती बिना फ्लैशर
मुख्य चुनाव आयुक्त, सीएजी, लोकसभा उपाध्यक्ष, राज्य मंत्री, सचिव स्तर के अधिकारी, एम्बुलेंस, पुलिस की गाड़ियाँ और इमरजेंसी सेवा की गाड़ियां.
पीली बत्ती
कमिश्नर इनकम टैक्स, रिवेन्यू कमिश्नर, डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर, पुलिस अधीक्षक.
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