काफी समय से चर्चा में चल रहा धारा 377 इस समय देश की सुप्रीम कोर्ट में बहस का मुद्दा बना हुआ है. धारा 377 पर एक ओर जहाँ पहले केंद्र सरकार विपक्ष में दलीलें दे रही थी वहीं अब केंद्र सरकार ने सीधा रास्ता पकड़ते हुए इस मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट पर छोड़ दिया. चल रही बहस में बुधवार को केंद्र सरकार ने इस फैसले पर बहस नहीं करने की बजाय इस मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट के विवेक पर छोड़ने का फैसला किया है.
आपको बता दें, धारा 377 समलैंगिकों के आपसी सहमति से बनाए गए शारीरिक संबंधो पर कड़ी सजा का प्रावधान रखता है. वहीं इस धारा पर पिछले दो दिनों से सुप्रीम कोर्ट में अपने खुद के फैसले पर ही बहस चल रही है. दरअसल इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने भी धारा 377 में शारीरिक संबंधो को अपराध की श्रेणी में रखा था जिस पर अब दायर याचिकाओं के आधार पर सुप्रीम कोर्ट फिर से विचार कर रही है ओर दलीलें सुन रही है.
1862 में बना यह कानून देश में एक सेक्स के जोड़ों के लिए काफी खतरनाक है. इस धारा में दिए जाने वाली सजा काफी ज्यादा है. आर्टिकल 377 में दोषी पाए जाने पर करीब 10 साल तक की सजा है वहीं इन मामलों में दोषी पाए जाने पर अपराधी के लिए जमानत का कोई भी रास्ता खुला नहीं होता. वहीं यह आर्टिकल पुलिस को ऐसे अधिकार भी देता है जिसमें जमानत के लिए कोई वारंट लेने की जरूरत नहीं होती है.
Article 377: समलैंगिक संबंध प्राकृतिक है: वकील
Editor Desk: जानिए क्या है Article 377 और इसकी बहस