नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने शीर्ष अदालत को बताया है कि कोरोना वायरस संक्रमण की दूसरी लहर निपटने के लिए जो भी करना जरूरी था, या फिर जिन भी चीजों की आवश्यकता थी, उसने पेशेवर तरीके से अपना दायित्व निभाते हुए वो सब किया है। केंद्र सरकार ने कहा है कि कोरोना की दूसरी लहर से पहले भी तैयारियाँ की गई थीं। मंगलवार को शीर्ष अदालत में दायर 106 पन्नों के हलफनामे में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने ये बातें कही।
हलफनामे के मुताबिक, केंद्र सरकार ने सभी राज्यों की सरकारों के साथ कई बार मीटिंग की और उनसे बार-बार अनुरोध किया कि वो अपने-अपने राज्यों में सार्वजनिक स्थलों पर कोरोना गाइडलाइन्स का पालन सुनिश्चित कराएँ। MHA के एडिशनल सेक्रेटरी द्वारा तैयार किए गए इस हलफनामे में सुप्रीम कोर्ट के सामने कई तथ्य रखे गए हैं, क्योंकि कोरोना से संबंधित कई मामलों की सुनवाई वहाँ चल रही है। केंद्र सरकार का कहना है कि संक्रमण पीक पर पहुँचने के बाद से गलत नैरेटिव चलाया जा रहा है कि केंद्र सरकार ने इससे निपटने के लिए कोई कदम नहीं उठाया और इससे अनभिज्ञ बनी रही।
जस्टिस DY चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली एक नवगठित बेंच ने इस एफिडेविट पर संज्ञान लिया। इसमें मोदी सरकार ने बताया है कि किस प्रकार कोरोना से सबसे अधिक प्रभावित 15 राज्यों में ऑक्सीजन सप्लाई के लिए फैसले लिए गए। तमाम राज्यों में सक्रिय कोरोना मामलों को लेकर भविष्य के आँकड़ों का अंदाज़ा लगाया गया था और उसी हिसाब से उन्हें ऑक्सीजन का कोटा दिया गया। बताया गया है कि दिल्ली और उत्तर प्रदेश में मात्र 5 दिनों के भीतर डिमांड 100 फीसद तक बढ़ गई। केंद्र ने बताया है कि 7 कंपनियों को 74-90 लाख रेमेडेसिविर इंजेक्शन के निर्माण के लिए मंजूरी दी गई थी। ये गंभीर या सामान्य कोरोना स्थिति में दिया जाता है, जो कुल सक्रिय मामलों का 20 फीसद ही है।
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