'जब तक नियुक्ति प्रक्रिया नहीं बदलती, खाली रहेंगे जजों के पद..', कानून मंत्री रिजिजू की दो टूक

'जब तक नियुक्ति प्रक्रिया नहीं बदलती, खाली रहेंगे जजों के पद..', कानून मंत्री रिजिजू की दो टूक
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नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने संसद में कहा है कि जजों की भारी कमी के कारण ऊपरी अदालतों में लंबित पड़े मामलों की संख्या चिंता का विषय है, किन्तु उनकी नियुक्ति के लिए जब तक कॉलेजियम प्रणाली के स्थान पर नई व्यवस्था नहीं लागू हो जाती, तब तक इस मुद्दे का समाधान नहीं होगा। केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने गुरुवार (15 दिसंबर) को राज्यसभा में कहा कि जब तक जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया में परिवर्तन नहीं होता, उच्च न्यायिक रिक्तियों का मुद्दा उठता रहेगा। 

पूरे देश में लंबित मामलों की बढ़ती तादाद के लिए न्यायिक रिक्तियों को जिम्मेदार ठहराते हुए, किरेन रिजिजू ने कहा कि सरकार के पास न्यायिक रिक्तियों को भरने की सीमित शक्ति है, हालांकि, उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के जजों से यह सुनिश्चित करने का अनुरोध किया है कि वे गुणवत्तापूर्ण जजों के नामों की सिफारिश करें। उच्च न्यायपालिका में न्यायमूर्तियों की नियुक्ति की प्रक्रिया को लेकर केंद्र सरकार और न्यायपालिका के बीच जारी मतभेद के बीच केंद्रीय कानून मंत्री के ये बयान आए हैं। वहीं, शीर्ष अदालत ने हाल ही में कॉलेजियम प्रणाली के खिलाफ सरकारी अधिकारियों द्वारा की गई टिप्पणियों पर नाराजगी प्रकट की है। अदालत ने कहा था सरकार को नया कानून बनाने से कोई नहीं रोक सकता, मगर जब तक नियुक्तियों का मौजूदा कानून है, तो उसका पालन किया जाना चाहिए।

किरेन रिजिजू ने आगे कहा कि उन्होंने हाल में ही 20 जजों के नाम सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को वापस भेजे हैं। 9 दिसंबर 2022 तक उच्च न्यायालय के जजों की अधिकृत संख्या 1108 के बदले में 777 जज कार्य कर रहे हैं, जिससे 331(30 फीसदी) की रिक्तियां बनी हुई हैं। इन 331 रिक्तियों के नाम पर उच्च न्यायालय से 147 प्रस्ताव मिले हैं। शेष 184 रिक्तियों के संबंध में सरकार को कोई प्रस्ताव नहीं मिला है। उन्होंने कहा कि 9 दिसंबर तक सरकार ने उच्च न्यायालय में 165 न्यायाधीशों की नियुक्तियां की हैं, जो एक रिकार्ड है।

इसके साथ ही किरेन रिजिजू ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय को उन्हीं मामलों को सुनना चाहिए जो प्रासंगिक हों और संविधान कोर्ट के लिए विचार योग्य हों। अगर सर्वोच्च न्यायालय जमानत याचिकाएं और अन्य फालतू PIL सुनना शुरु करेगा, तो निश्चित रूप से माननीय न्यायालय पर यह अतिरिक्त बोझ डालेगा। कानून मंत्री ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय में 70,000 केस पेंडिंग हैं। वहीं निचली अदालतों में 4.5 करोड मामले लंबित हैं। हमें न्यायपालिका से यह पूछना चाहिए कि वह यह सुनिश्चित करे कि सभी योग्य लोगों को इंसाफ मिले और ऐसे लोग जो प्रक्रिया को बाधित कर रहे हैं, उन पर भी ध्यान दिया जाए।

केन्द्रीय विधि एवं न्याय राज्य मंत्री एस पी सिंह बघेल ने एक सवाल का जवाब देते हुए कहा है कि सुप्रीम कोर्ट में सर्दियों तथा गर्मियों में अवकाश का मामला न्यायपालिका के दायरे में आता है और सरकार इसे ख़त्म करने के बारे में अपनी तरफ से फैसला नहीं ले सकती। हालांकि उन्होंने कहा कि इस संबंध में मुख्य न्यायाधीश (CJI) के साथ सरकार को बात करने में कोई हर्ज नहीं है। 

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