सरकार अगले हफ्ते से संसद में नागरिकता संशोधन विधेयक (कैब) को पेश करने वाली है. इस विधेयक के तहत मुस्लिम बहुल अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के सभी धार्मिक अल्पसंख्यक यानी हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई भारतीय नागरिकता के योग्य हो जाएंगे. इसी सिलसिले में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पूर्वोत्तर राज्यों के मुख्यमंत्रियों और सामाजिक और सांस्कृतिक निकायों, छात्र संगठनों और राजनीतिक दलों के नेताओं के साथ शुक्रवार से बैठक कर रहे हैं. जिससे कि नागरिकता अधिनियम में संशोधन की योजना पर बातचीत की जा सके. यह जानकारी गृह मंत्रालाय के एक अधिकारी ने दी है.
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आपकी जानकारी के लिए बता दे कि कैब विधेयक के जरिए नागरिकता अधिनियम, 1955 में संशोधन किया जाना है ताकि अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश के धार्मिक अल्पसंख्यक यानी हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाईयों को भारतीय नागरिकता प्रदान की जा सके. इसका वादा भाजपा ने 2014 और 2019 लोकसभा चुनाव के दौरान किया था.कैब को भारी विरोध का सामना करना पड़ रहा है खासतौर पर पूर्वोत्तर में. उदाहरण के लिए असम में प्रस्तावित संशोधन में यह चिंता जताई गई है कि यह 1985 असम समझौते को रद्द कर देगा. जिसने सभी अवैध अप्रवासियों के निर्वासन के कट-ऑफ के लिए 24 मार्च 1971 की तारीख निर्धारित की था.
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दुसरी तरफ मिजोरम में विधेयक का विरोध हो रहा है क्योंकि यह बौद्ध चकमा शरणार्थियों को भारतीय नागरिक बना देगा. प्रस्तावित विधेयक को लेकर त्रिपुरा और अरुणाचल प्रदेश में विरोध हो चुका है. विपक्षी पार्टियां जैसे कि कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और सीपीआई (मार्क्सवादी) इसका पुरजोर विरोध कर रहे हैं.इन विपक्षी पार्टियों का कहना है कि भारत का संविधान धर्म के आधार पर नागरिकता देने की बात नहीं कहता है. इसके विपरीत, भाजपा और उसके सहयोगियों ने जोर देकर कहा है कि तीनों देशों के अल्पसंख्यकों जिनमें बड़ी संख्या में हिंदू शामिल हैं, को वहां उत्पीड़न का सामना करना पड़ा, इसलिए उन्हें नागरिकता दी जानी चाहिए.
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