नई दिल्लीः देश में एक बार फिर दलहन के उत्पादों की कीमत बढ़ सकती है। सरकार का जोर इस बार तिलहन फसलों की खेती पर है। लेकिन इसके साथ दलहन और मोटे अनाज वाली फसलों का रकबा घटने का खतरा भी है। इन फसलों की खेती में समन्वय बनाने की जरूरत पर सरकार का जोर होगा। खाद्य तेलों की आयात निर्भरता घटाने के साथ दलहन और मोटे अनाज का उत्पादन बनाए रखना एक बड़ी चुनौती होगी।
इसके लिए जहां मिश्रित खेती की रणनीति तैयार की गई है, वहीं करोड़ों हेक्टेयर परती छोड़ी जाने वाली जमीन के उपयोग पर सरकार प्रमुखता से ध्यान देने वाली है। खाद्य तेलों की कुल जरूरतों का 60 फीसद से अधिक आयात करना पड़ता है, जिस पर 80 हजार करोड़ रुपये से अधिक विदेशी मुद्रा खर्च होती है। सरकार ने इसे हर हाल में घटाने की योजना तैयार की है, जिसके तहत तिलहन फसलों की खेती को विशेष प्राथमिकता दी जाएगी। इसके लिए रबी सीजन से ही ऑयल सीड उप-मिशन शुरू हो रहा है।
किसानों को उन्नत प्रजाति के बीजों के किट मुफ्त वितरित किए जा रहे हैं। तिलहन बीज हब बनेगा, जिसमें उन्नत बीज तैयार किए जाएंगे। केंद्रीय कृषि आयुक्त डॉ. सुरेश मल्होत्र ने बताया कि तिलहन के साथ दलहन और मोटे अनाज की पैदावार बनाए रखने की चुनौती से निपटने की रणनीति तैयार की गई है। देश की कुल खेती योग्य भूमि का एक बड़ा हिस्सा एक-फसली होता है।
बाकी समय उसे परती छोड़ दिया जाता है। खेती वाली इस जमीन का उपयोग तिलहनी फसलों की खेती में किया जा सकता है। कृषि मंत्रलय के ताजा आंकड़ों के हिसाब से चालू खरीफ सीजन में 1.20 करोड़ हेक्टेयर में दलहनी, 1.88 करोड़ हेक्टेयर में मोटे अनाज वाली और 1.82 करोड़ हेक्टेयर में तिलहनी फसलों की खेती की गई है।
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