छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव के पहले चरण का मतदान समाप्त हो गया है। सोमवार को छत्तीसगढ़ की जनता ने जिस तरह से अपने घरों से निकलकर, नक्सलियों के डर से आगे बढ़कर मतदान में भाग लिया, उसे छत्तीसगढ़ की जनता के लिए लोकतंत्र के अच्छे दिन की शुरुआत माना जा सकता है। हालांकि नक्सलियों ने छत्तीसगढ़ की जनता को चुनावों का बहिष्कार करने और मतदान करने पर जान से मार डालने की धमकी तक दी थी, लेकिन छत्तीसगढ़ की जनता ने इन धमकियों ने न डरकर अपने सुनहरे भविष्य के लिए बढ़—चढ़कर मतदान किया। यह बताता है कि अब वहां पर नक्सलियों का खौफ कम हो गया है और जनता यह जानती है कि एक मजबूत सरकार ही उन्हें मजबूत भविष्य दे सकती है।
यहां पर एक खास बात यह रही कि इस बार लोग उन इलाकों में भी वोट डालने के लिए अपने घरों से निकले, जहां पिछले विधानसभा चुनावों में एक भी वोट नहीं पड़ा था। नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा जिले में भी लोग अपने घरों से निकले और वोट डाले। मेदपाल में 4 लोगों ने वोट डाला, तो काकड़ी में 9 लोगों ने वोट डाला। भेज्जी में 2013 में किसी ने वोट नहीं डाला था और इस बार यहां के लोग भी बाहर निकले और अपने मतदान का प्रयोग किया। यह वे जगहें हैं, जहां पर अभी तक पोलिंग बूथ सन्नाटे में रहते थे और कोई भी मतदाता वहां नजर नहीं आता था, लेकिन इस बार मतदाताओं ने इसे झुठला दिया और अपना मतदान किया। बदलाव की यह बयार सुहावनी है। पिछले चुनावों में जिस तरह इन इलाकों में जमकर हिंसा हुई थी, उससे इस बार हमारी सुरक्षा एजेंसियों ने अच्छे से निपटा। हमारे जवानों की चौकसी के कारण नक्सली कोई बड़ा हमला न कर सके और छिटपुट घटनाओं के साथ ही मतदान शांति पूर्वक पूरा हो गया।
दरसअल, नक्सलवाद जैसे नासूरों से लोकतंत्र के जरिए ही निपटा जा सकता है। बुलेट और बम पर लोकतंत्र में आस्था ही जीत दिला सकती है। जिस तरह से आज नक्सलियों की धमकी के बावजूद छत्तीसगढ़ की जनता ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया, उसे देखकर कहा जा सकता है कि नक्सल प्रभावित छत्तीसगढ़ के इलाकों में वो दौर आ गया है, जब जनता बुलेट और बम का जवाब लोकतंत्र से देगी। पहले चरण में 60 फीसदी वोटिंग यह दर्शाती है कि यहां की जनता अब बदलाव चाहती है। यही कारण है कि लोकतंत्र पर उसका विश्वास बढ़ा है और उसका यही विश्वास उसे पोलिंग बूथ तक खींच लाया।
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