कोविड की तीसरी लहर के बीच बच्चों में व्यस्कों के मुकाबले कम संकट होने की संभावना है। WHO और ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (AIIMS) के ताजा सीरोप्रेवेलेंस सर्वे में इस बात का दावा किया है। बता दें कि कोविड के खतरनाक वैरिएंट को देखते हुए तीसरी लहर का अनुमान जताया जा रहा है। हालांकि WHO और एम्स का नया अध्ययन थोड़ा राहत देने वाला है।
नए सीरो सर्वे के मुताबिक सार्स कोव-2 'सीरो पॉजिटिविटी' दर बच्चों में वयस्कों की तुलना में अधिक है और इसलिए ऐसी संभावना नहीं है कि भविष्य में कोविड-19 का मौजूदा स्वरूप दो वर्ष और इससे अधिक उम्र के बच्चों को तुलनात्मक रूप से अधिक प्रभावित करने वाला है। 'सीरो-पॉजिटिविटी' रक्त में एक विशेष प्रकार की एंटीबॉडी की मौजूदगी है।
पांच राज्यों के 10,000 लोगों के सैंपल लिए गए: देश में कोरोना वायरस की तीसरी लहर में बच्चों और किशोरों के सर्वाधिक प्रभावित होने का अनुमान को लेकर जताई जा रही चिंताओं के दौरान अध्ययन के नतीजे आए हैं। अध्ययन के अंतरिम नतीजे मेडआरक्सीव में जारी किए गए हैं जो एक प्रकाशन पूर्व सर्वर है। ये नतीजे 4,509 भागीदारों के मध्यावधि विश्लेषण पर आधारित हैं। इनमें दो से 17 वर्ष के आयु समूह के 700 बच्चों को जबकि 18 या जिससे ज्यादा आयु समूह के 3,809 व्यक्तियों को शामिल किया गया। ये लोग 5 राज्यों से लिए गए थे।
आंकड़े जुटाने की अवधि 15 मार्च से 15 जून के मध्य की थी। इन्हें 5 जगहों से लिया गया, जिनमें दिल्ली शहरी पुनर्वास कॉलोनी, दिल्ली ग्रामीण (दिल्ली-NCR के तहत फरीदाबाद जिले के गांव), भुवनेश्वर ग्रामीण क्षेत्र, गोरखपुर ग्रामीण क्षेत्र और अगरतला ग्रामीण क्षेत्र मौजूद हैं। एम्स और WHO ने मिलकर किया अध्ययन ये नतीजे बहु-केंद्रित, आबादी आधारित, उम्र आधारित सीरो मौजूदगी अध्ययन का भाग है, जिसे अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) के निदेशक रणदीप गुलेरिया और डिपार्टमेंट फॉर सेंटर ऑफ मेडिसीन के प्रोफेसर पुनीत मिश्रा, शशि कांत और संजय के राय सहित अन्य विशेषज्ञों द्वारा WHO यूनिटी अध्ययनों के अंतर्गत किया जाने वाला है।
यह अध्ययन पांच चयनित राज्यों में कुल 10,000 की प्रस्तावित आबादी के मध्य किया जाने वाला है। नतीजों में बोला गया है, ''सीरो मौजूदगी 18 साल से कम आयु के समूह में 55.7 प्रतिशत और 18 वर्ष से अधिक आयु के समूह में 63.5 फीसद है। वयस्कों और बच्चों के मध्य मौजूदगी में सांख्यिकी रूप से कोई मायने रखने वाला कोई अंतर नहीं है। अध्ययन के नतीजे के अनुसार शहरी स्थानों (दिल्ली में) की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में सीरो पॉजिटिविटी दर कम हो चुकी है। ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों में वयस्कों की तुलना में अपेक्षाकृत कम सीरो पॉजिटिविटी पाई गई।
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