जयपुर: राजस्थान उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में एक सरकारी कर्मचारी के ट्रांसफर के आदेश में यह कहते हुए हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया कि याचिकाकर्ता की यह दलील कि उसके बच्चे स्कूल जाने वाले हैं और माता-पिता बूढ़े हैं, ट्रांसफर रोकने का कोई ठोस आधार नहीं हो सकता है। न्यायमूर्ति विनीत कुमार माथुर की एकल पीठ ने कर्मचारी के स्थानांतरण आदेश में किसी भी दुर्भावना के आरोप को भी खारिज कर दिया है।
न्यायमूर्ति माथुर ने अपने आदेश में कहा कि, '14/01/2023 के ट्रांसफर आर्डर को देखने से पता चलता है कि कुल 151 लोगों का तबादला हुआ है। तबादला आदेश अकेले याचिकाकर्ता पर ही नहीं लागू होता है। इसमें कोई दुर्भावनापूर्ण इल्जाम नहीं झलकता है और न ही सक्षम प्राधिकारी द्वारा पारित स्थानांतरण आदेश को इस आधार पर चुनौती दी गई है कि प्राधिकरण, जिसने ट्रांसफर का आदेश पारित किया है, याचिकाकर्ता को स्थानांतरित करने के लिए सक्षम नहीं है।'
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 1999 में याचिकाकर्ता की पटवारी के पद पर नियुक्ति की गई थी। 30 सितंबर, 2021 को याचिकाकर्ता को निरीक्षक भू-अभिलेख, तहसील चिखली, डूंगरपुर के दफ्तर से निरीक्षक भू-अभिलेख, बोडिगामा बड़ा, तहसील सबला, डूंगरपुर के कार्यालय में ट्रांसफर कर दिया गया। दो वर्षों के बाद फिर से दिनांक 14 जनवरी, 2023 के आदेश द्वारा याचिकाकर्ता को तहसील सबला से अंचल मोहकमपुरा, तहसील कुशलगढ़, जिला बांसवाड़ा ट्रांसफर कर दिया गया।
इस ट्रांसफर के खिलाफ पटवारी ने अदालत का रुख किया था। हेमेश भवसार नामक कर्मचारी ने अपनी रिट याचिका में बूढ़े माता-पिता और स्कूल जाते बच्चों का तर्क रखा था। लेकिन, अदालत ने याचिकाकर्ता के तर्क को ट्रांसफर को चुनौती देने का ठोस आधार मानने से इनकार कर दिया। अदालत ने यह भी कहा कि चूंकि याचिकाकर्ता सरकारी कर्मचारी है, इसलिए सरकार उसका ट्रांसफर कहीं भी कर सकती है और उसे चुनौती देने का कोई ठोस आधार होने पर ही कोर्ट उसके खिलाफ कोई फैसला सुना सकती है।
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