बीजिंग: एक तरफ जहां चीन में उईगर मुस्लिमों पर जारी जुल्म का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। वहीं, चीन ने मुस्लिमों के धार्मिक ग्रंथ कुरान और ईसाई समुदाय की पवित्र पुस्तक बाईबल को लेकर नया फैसला लिया है। चीन इन दोनों ग्रंथों को अपने हिसाब से फिर से लिखने का फैसला लिया है। इसके पीछे चीन की दलील यह है कि वह अब अपने 'समाजवादी मूल्यों' की हिफाजत करेगा। जो भी पैराग्राफ गलत समझे जाएंगे उनमें या तो परिवर्तन किया जाएगा या उनका दुबारा अनुवाद किया जाएगा। कुल मिलाकर कहें तो चीन अपने हिसाब से इन धर्मग्रंथों की व्याख्या करेगा।
एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, कम्युनिस्ट पार्टी के एक उच्च अधिकारी ने फरमान जारी किया है कि बाइबल और कुरान के नए संस्करणों में कम्युनिस्ट पार्टी की मान्यताओं के विरुद्ध जाने वाली कोई भी सामग्री नहीं होनी चाहिए। यदि किसी पैराग्राफ की व्याख्या गलत समझी जाती है तो उसमें बदलवा या उसका दोबारा अनुवाद किया जाएगा। हालाँकि बाइबल और कुरान का विशेष रूप से जिक्र नहीं किया गया है, किन्तु कम्युनिस्ट पार्टी ने 'ऐसे धार्मिक धर्मशास्त्रों के व्यापक मूल्यांकन करने के लिए कहा है, जो उन सामग्रियों को लक्षित करते हैं जो समय के परिवर्तन में फिट नहीं बैठते हैं।
दरअसल, यह आदेश नवंबर महीने में आयोजित की गई चीनी पीपुल्स पॉलिटिकल कंसल्टेंट कॉन्फ़्रेन्स की राष्ट्रीय समिति की जातीय और धार्मिक मामलों की समिति की एक बैठक के दौरान जारी किया गया था। यह समीति चीन में जातीय और धार्मिक मामलों पर निगाह रखती है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ के मुताबिक, गत माह में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की केंद्रीय समिति के 16 विशेषज्ञों और विभिन्न धर्मों के प्रतिनिधियों ने एक इस मीटिंग में हिस्सा लिया था।
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