इस्लामाबाद: पाकिस्तान और चीन हमेशा अपनी सदाबहार मित्रता का बखान करते रहते हैं, किन्तु विदेश नीति के कई जानकार इस दोस्ती के पीछे की सच्चाई कुछ और ही बता रहे हैं। हाल ही के महीनों में चीन-पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) ने पाक को उत्साहित, भारत को अप्रसन्न और अमेरिकी विश्लेषकों को चिंतित किया है। सीपीईसी परियोजना के तहत चीन का शिनजियांग प्रांत से पाकिस्तान का ग्वादर क्षेत्र जोड़ दिया जाएगा। यह परियोजना चीन की महत्वाकांक्षी परियोजना बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव का ही एक हिस्सा है, जिसमें चीन एशिया और यूरोप को जोड़ने की योजना बना रहा है।
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उल्लेखनीय है कि पाकिस्तानी और चीनी अधिकारी अक्सर सीपीईसी परियोजना का ढिंढोरा पीटते रहते हैं और यह दावा करते हैं कि इससे पाकिस्तान की बिजली उत्पादन की दिक्कत दूर हो जाएगी, सड़क और रेल का जाल बिछ जाएगा और पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था भी छलांग लगाएगी। हालांकि, ये सारे लाभ शायद ही वास्तविकता के धरातल पर दिखने वाले हैं। चीन की इस परियोजना के कारण पाकिस्तान पर कर्ज का बोझ बढ़ता ही जा रहा है और उसकी आंतरिक सुरक्षा की खामियां भी दिखाई देने लगी हैं।
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विश्लषकों के अनुसार, पाकिस्तान और चीन की दोस्ती का इतिहास स्वार्थ और चालाकी की बुनियाद पर आधारित रहा है। चीन ने सैन्य सहायता और यूएन सुरक्षा परिषद में राजनीतिक प्रश्रय से पाकिस्तान को केवल अपना एक उपभोक्ता बना डाला है। पाकिस्तान में अमेरिकी वर्चस्व को कम करने और कम्युनिस्ट विरोधी पश्चिमी संधियों को साधने के लिए चीन ने पाक को दिल खोलकर ऋण भी दिया है। चीन ने पाकिस्तान को भारत के विरुद्ध खड़ा करने और सूए उकसाने में भी अहम् भूमिका अदा की है। यहां तक की चीन ने भारत-पाक युद्ध में भी कभी पाक की मदद नहीं की और पाकिस्तान, चीन को अपना परम मित्र समझता रहा है।
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