चीन की कंपनियां धीरे-धीरे परन्तु बहुत रणनीति के साथ भारत के आइटी, टेक्नोलॉजी और अन्य सेक्टर में कदम बढ़ा रही हैं। लगभग हर क्षेत्र में उद्योग दर उद्योग विस्तार करती जा रही चीनी कंपनियों की गति को चुनौती देना भारतीय कंपनियों के लिए मुश्किल होता जा रहा है। इसके अलावा स्मार्टफोन से ऑटोमोबाइल/इलेक्टिक वाहन और डिजिटल पेमेंट व कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स से सोशल मीडिया तक शायद ही कोई क्षेत्र बचा है,वही जहां चीन की कंपनियों ने दखल नहीं बढ़ाया है।
एक ओर जहां अमेजन, फेसबुक और व्हाट्सएप जैसी अमेरिकी कंपनियों को कई बार जांच और राजनीतिक विरोध का सामना करना पड़ा है, वहीं चीनी कंपनियां लगातार भारतीय बाजार में अपनी दखल बढ़ाती जा रही हैं। चीन की अर्थव्यवस्था का आकार अभी 14.14 लाख करोड़ डॉलर है। 2024 तक इसने अर्थव्यवस्था को 20 लाख करोड़ डॉलर करने का लक्ष्य तय किया है। इस क्रम में चीन के लिए करोड़ों ग्राहकों के साथ भारत अहम बाजार बनकर सामने आया है। चीरी कंपनियों ने कुछ सेक्टर में भारत की घरेलू कंपनियों के अस्तित्व पर संकट खड़ा कर दिया है।इस क्रम में स्मार्टफोन सेक्टर का उदाहरण प्रासंगिक है। हांगकांग के काउंटरपॉइंट रिसर्च के अनुसार , 2019 में भारत के 72 फीसद स्मार्टफोन बाजार पर चीनी ब्रांड का दबदबा रहा।
सालभर पहले इसका स्तर 60 फीसद था। इसमें से अकेले 37 फीसद बाजार पर बीबीके ग्रुप का कब्जा है। इसके साथ ही ओप्पो, वीवो, रीयलमी और वनप्लस ब्रांड की मूल कंपनी बीबीके ही है। इसकी प्रतिद्वंद्वी कंपनी श्याओमी अपने रेडमी और पोको ब्रांड के साथ 28 फीसद बाजार पर काबिज है। वही स्थानीय स्तर पर बढ़ाया उत्पादन : भारतीय बाजार में बढ़त बनाने के लिए चीन की कंपनियों ने यहां अपने मैन्यूफैक्चरिंग प्लांट भी स्थापित किए हैं। ताइवान की बहुराष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स फर्म फॉक्सकॉन और सिंगापुर की फ्लेक्स लिमिटेड के साथ मिलकर श्याओमी ने भारत में अभी स्मार्टफोन मैन्यूफैक्चरिंग के सात प्लांट खोले हैं। भारत में बिकने वाले इसके 99 फीसद स्मार्टफोन स्थानीय स्तर पर ही तैयार होते हैं। इन सात प्लांट में श्याओमी ने 25,000 से ज्यादा लोगों को नौकरी दी हुई है।
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