भारत में तेजी से टेस्ट करने के लिए चीन से टेस्ट किट आयत की गई है. वही, अब गुणवत्ता के दावों के साथ चीन से आइ रैपिड टेस्ट किट पहली नजर में असफल होती दिख रही है. इस किट के रिजल्ट में छह फीसदी से 71 फीसदी तक अंतर आ रहा है. किट की गुणवत्ता की जांच के लिए आइसीएमआर ने अपने आठ संस्थानों को फील्ड में भेजने का फैसला किया है. वैसे खून में एंटीबॉडी पर आधारित इस किट का इस्तेमाल कोरोना मरीज का पता लगाने के बजाय सर्विलांस के लिए किया जा रहा है, लेकिन इतने अंतर के बाद सर्विलांस में भी गलत नतीजे निकलने की आशंका बढ़ गई है. पिछले हफ्ते ही चीन से 6.5 लाख रैपिड टेस्टिंग किट मंगाए गए थे.
केदारनाथ के बाद बदरीनाथ के कपाट भी खोलने की मांग
इस मामले को लेकर आइसीएमआर के डॉक्टर रमन गंगाखेड़कर के अनुसार रैपिड टेस्ट में एक राज्य में कोरोना की पहचान कम होने की शिकायत मिलने के बाद तीन अन्य राज्यों से भी रिपोर्ट मांगी गई. सभी राज्यों का कहना था कि आरटी-पीसीआर टेस्ट में पॉजिटिव पाए गए सैंपल्स की जांच के दौरान 6 से 71 प्रतिशत तक अंतर पाया गया. जो चिंताजनक है. वैसे चीन से रैपिड टेस्ट मंगाने के फैसले को सही बताते हुए डाक्टर गंगाखेड़कर ने कहा कि चीन से आने के बाद लैब में किट की जांच की गई थी, जिसमें यह 71 फीसदी सही पाया जा रहा था.
उत्तराखंड में फंसे प्रवासी मजदूरों को उनकी योग्यता के हिसाब से दिया जाएगा काम
उम्मीद के मुताबिक इसके परिणाम नही आने के कारण इसका सर्विलांस में उपयोग करने का फैसला किया गया. उन्होंने कहा कि कोरोना जैसे नए वायरस की पहचान के लिए यह फर्स्ट जेनरेशन टेस्ट है, इसके रिजल्ट में थोड़ा बहुत अंतर आना स्वाभाविक है. इसकी गुणवत्ता में धीरे-धीरे सुधार आएगा. लेकिन उन्होंने इतना जरूर माना कि रिजल्ट में इतना अंतर आने के कारण सर्विलांस में भी उसकी उपयोगिता संदिग्ध हो गई है.
कोरोना से 600 लोगों ने गवाई जान, तेजी से बढ़ रहा संक्रमण का आंकड़ा
कोरोना फैलाने की फिराक में कई आतंकी, भारत पर मंडरा रहा बड़ा खतरा
'पालघर मॉब लिंचिंग' को लेकर सबसे बड़ा खुलासा, ईसाई मिशनरी और CPM का नाम आया सामने !