आप सभी जानते ही होंगे कि हिन्दू धर्म में कई देवी और देवता हैं जिनकी सभी पूजा करते हैं. ऐसे में भगवान की पूजा के लिए बहुत सी विधियों का प्रयोग किया जाता है. ऐसे में आज हम आपको छिन्नमस्ता देवी के बारे में बताने जा रहे हैं जो दस महाविद्यायों में से एक मानी गईं हैं. जी हाँ, कहते हैं इनके एक हाथ में अपना ही कटा हुआ सिर होता है और दूसरे हाथ में कटार होती है. ज्योतिषों के अनुसार इन देवी के गले में हड्डियों की माला तथा कंधे पर यज्ञोपवीत धारण होता है. इसी के साथ कहते हैं कि दिशाएं ही इनके वस्त्र माना जाते हैं और मां के कटे हुए स्कन्ध से रक्त की धाराएं निकलती रहती हैं. इसी के साथ ऐसा भी मानते हैं कि उनमें से एक को वह स्वयं पी जाती हैं. वहीं अन्य दो धाराओं से अपनी वर्णिनी और शाकिनी नाम की दो सहेलियों को तृप्त करती हैं. ज्योतिषों के अनुसार छिन्नमस्ता देवी का संबंध महाप्रलय से है और यह महाविद्या भगवती त्रिपुरसुंदरी का ही रौद्र रूप है और इनका रूप तो अनोखा है ही साथ ही ये शिव शक्ति के विपरीत रति आलिंगन पर स्थित हैं. कहा जाता है जो व्यक्ति मां की उग्र रूप में आराधना करने लगता है उसे मां उग्र रूप में दर्शन देती हैं और शांत भाव से इनकी उपासना करने पर यह अपने शांत स्वरूप को प्रकट करती हैं. अगर आप अदालत के मामलों से छुटकारा पाना चाहते हैं, सरकारी नौकरी के लिए, व्यापार में एक मज़बूत मुक़ाम हासिल करने और अच्छी सेहत के लिए आप सभी छिन्नमस्ता देवी की पूजा कर सकते हैं इससे आपको लाभ होगा.
आइए जानते हैं माता छिन्नमस्ता के मंत्र.
एकाक्षर मंत्र- हूं.
त्रयक्षर मंत्र - ऊं हूं ऊं.
षडक्षर मंत्र - (अ) ह्रीं क्लीं श्रीं ऐं हूं फट्. (ब) ह्रीं क्लीं हूं ऐं हूं फट्. (स) ह्रीं ऐं हूं ऐं हूं फट्.
द्वादशाक्षर- हूं वज्रवैरोचनीये हूं फट् स्वाहा.
त्रयोदशाक्षर मंत्र- ऊं वज्रवैरोचनीये हूं हूं फट् स्वाहा.
चतुर्दशाक्षर मंत्र- (अ) ह्रीं हूं ऐं ऊं वज्रवैरोचनीये फट् स्वाहा. (ब) ह्रीं हूं ऐं वज्रवैरोचनीये फट् स्वाहा. (स) ह्रीं हूं ऐं वज्रवैरोचनीये हूं फट् स्वाहा.माता का सर्वार्थसिद्ध मंत्र :-
ऊं सर्वसिद्धिप्रदे वर्णिनीये सर्वसिद्धिप्रदे डाकनीये वज्रवैरोचनीये एह्योहि इमं बलिं गृ गृ मम सिद्धिं देहिं ह्रीं फट स्वाहा.
छिन्नमस्ता गायत्री मंत्र :-
ॐ वैरोचन्ये विद्महे छिन्नमस्तायै धीमहि तन्नो देवी प्रचोदयात्.
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