सर्वोच्च न्यायालय के चीफ जस्टिस एस ए बोबडे ने एक महिला अधिवक्ता की याचिका पर टिप्पणी की है। उन्होंने कहा कि अब वक़्त आ गया है कि महिलाओं को भी सीजेआई होना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमारी ओर से कोई पक्षपात नहीं किया जाता। दरअसल, हाल ही में एक महिला अधिवक्ता ने याचिका दायर कर उच्च न्यायालय के जजों के तौर पर महिलाओं की उचित भागीदारी की मांग की है। उनका कहना था कि स्त्रियों का अनुपात ज्यूडीशियरी में मात्र 11 प्रतिशत है जो बहुत ही कम है।
सर्वोच्च न्यायालय के पिछले 71 वर्षों के कामकाज में 247 जजों में से केवल आठ महिलाएं थीं। मौजूदा वक़्त में जस्टिस इंदिरा बनर्जी सर्वोच्च न्यायालय में अकेली महिला जज हैं। पहली महिला जज फातिमा बीवी थी, जो 1987 में नियुक्त हुई थीं। याचिका दर्ज करने वाली महिला अधिवक्ता का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को सुप्रीम कोर्ट तथा हाईकोर्ट में प्रैक्टिस कर रही महिला वकीलों को जज पद तक के लिए चुनना चाहिये।
दरअसल, उच्च न्यायालय में पेंडिंग मामलों को निपटाने के लिए एडहॉक जजों को नियुक्त करने के मामले के दौरान महिला अधिवक्ता की ओर से दाखिल याचिका पर सीजेआई ने नोटिस जारी करने।से मना किया था। याचिका में मांग की गई है कि MOP में संशोधन कर महिलाओं को जज नियुक्त करने का इंतजाम किए जाए। सीजेआई ने कहा कि उच्च न्यायालय के सीजे होने के समय हमने बहुत प्रयास किया था लेकिन जिस महिला वकील से पूछा जाता वो यही कहती कि बच्चों की जिम्मेदारी है घर की जिम्मेदारी है।
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