कोलकाता: कलकत्ता उच्च न्यायालय द्वारा पंचायत चुनावों के लिए पश्चिम बंगाल में केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की तैनाती के आदेश देने के 2 दिन बाद, राज्य निर्वाचन आयोग और ममता बनर्जी सरकार ने आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का फैसला किया है। स्पष्ट शब्दों में कहें तो, ममता सरकार राज्य में लगातार हिंसा होने के बावजूद केंद्रीय बलों की तैनाती का विरोध कर रही है। दरअसल, पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव के नामांकन के दौरान हुई हिंसक घटनाओं के मद्देनज़र कलकत्ता उच्च न्यायालय ने गुरुवार (15 जून) को निर्वाचन आयोग को 48 घंटे के अंदर सुरक्षाबलों की तैनाती के लिए केंद्र को एक अनुरोध भेजने का निर्देश दिया था।
अब सूत्रों ने बताया है कि शुक्रवार को राज्य निर्वाचन आयोग (SEC) के वरिष्ठ अधिकारियों और सरकार के कानूनी सलाहकारों के साथ मीटिंग में हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का फैसला लिया गया है। उल्लेखनीय है कि, भाजपा MLA विधानसभा में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस टीएस शिवगणनम और जस्टिस उदय कुमार की खंडपीठ ने अपने 13 जून के आदेश में कहा था कि संवेदनशील क्षेत्रों को चिन्हित करने और केंद्रीय बलों की तैनाती के आदेश का पालन नहीं किया गया है और न ही इस संबंध में कोई ठोस कदम उठाए गए हैं।
राज्य निर्वाचन आयोग के यह कहने पर कि संवेदनशील क्षेत्रों को चिन्हित करने में कुछ दिन लग सकते हैं, कोर्ट ने कहा कि हमारा विचार है कि और अधिक इंतज़र करने से स्थिति को और अधिक नुकसान होगा और चुनाव प्रक्रिया निष्पक्ष बनाए रखने में मदद नहीं मिल सकेगी। हाई कोर्ट ने पाया कि संवेदनशील क्षेत्रों को चिन्हित करने में प्रशासन की तरफ से ढिलाई बरती गई है और SEC ने 13 जून के निर्देशों को लागू करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। जिसके बाद हाई कोर्ट ने 15 जून को बंगाल में केंद्रीय बल तैनात करने का आदेश दिया था और कहा था कि, राज्य चुनाव आयोग 48 घंटे यानी 2 दिनों के अंदर इस संबंध में केंद्र सरकार से अनुरोध करे।
लेकिन, आज हाई कोर्ट द्वारा दिए गए 48 घंटे के समय का अंतिम दिन है, इससे पहले केंद्रीय बलों की तैनाती रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट जाने का फैसला ले लिया गया है। एक सूत्र के अनुसार, बंगाल सरकार का मानना है कि कानून के मुताबिक पंचायत चुनावों में सुरक्षा की जिम्मेदारी राज्य सरकार की है. उसे लगता है कि, केंद्रीय बलों की तैनाती पर राज्य को दरकिनार करते हुए उच्च न्यायालय ने राज्य चुनाव आयोग को सीधा आदेश दे दिया है.
हर चुनाव के दौरान बंगाल में होती है हिंसा:-
बता दें कि, चाहे विधानसभा के चुनाव हों या लोकसभा के, या फिर पंचायत या स्थानीय लोकल चुनाव। हर बार बंगाल में हिंसा का नंगा नांच देखने को मिलता रहा है। आरोप लगते हैं कि, सत्ताधारी पार्टी, विरोधी दलों के नेताओं को चुनाव में नामांकन करने से रोकती है, विपक्षी दलों के वोटर्स को डरा-धमकाकर मतदान करने से रोका जाता है। 2021 के बंगाल विधानसभा चुनाव में भी जमकर हिंसा भड़की थी, जिसमे भाजपा समर्थक लोगों का बड़ी तादाद में पलायन हुआ था। इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका भी दाखिल हुई थी, जिसमे दावा किया गया था कि, हिंसा के चलते 1 लाख लोगों को पलायन करना पड़ा है। इन लोगों ने असम-त्रिपुरा जैसे पड़ोसी राज्यों में शरण ली थी। याचिका में यह भी कहा गया कि पुलिस और 'राज्य प्रायोजित गुंडे' (सत्ताधारी TMC) आपस में मिले हुए हैं। यहीं कारण है कि पुलिस मामलों की जांच ही नहीं कर रही और उन लोगों को सुरक्षा देने में नाकाम रही, जो जान का खतरा महसूस कर रहे हैं। मौजूदा पंचायत चुनावों में भी अब तक बंगाल में एक कांग्रेस कार्यकर्ता और एक CPIM कार्यकर्ता कि हत्या हो चुकी है, साथ ही भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या की ख़बरें भी बंगाल से अक्सर सामने आती रहती है, तो वहीं TMC कार्यकर्ताओं का भी क़त्ल होता है। ऐसे में बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि, आखिर इतनी हिंसा के बावजूद राज्य की ममता सरकार केंद्रीय बलों की तैनाती का विरोध क्यों कर रहीं है ? और अगर बंगाल पुलिस सुरक्षा के लिए पर्याप्त है, तो फिर हर चुनाव में हिंसा क्यों होती है ? क्योंकि, अन्य राज्यों में भी चुनाव होते हैं, लेकिन इस तरह की हिंसा देखने को नहीं मिलती, जैसे बंगाल में होती है।
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