नई दिल्ली : अपने कम वजन और गर्माहट के कारण जानी जाने वाली जयपुरी रजाई का धंधा ठंड मे भी ठंडा चल रहा है.नोटबंदी के असर से अभी भी नहीं उबरे इस व्यवसाय से जुड़े व्यापारियों पर जुलाई में लागू हुए जी.एस.टी. के कारण मांग कम होने से जयपुरी रजाई के धंधे मे 50 फीसदी की कमी आ गई है.
इस बारे मे जयपुर रजाई व्यापार संघ के अध्यक्ष हरिओम लश्करी ने बताया कि गत वर्ष हुई नोटबंदी में पुराने नोट चलाने के लिए लोगों ने अतिरिक्त माल खरीद लिया. फिर इस साल जी.एस.टी. लागू हो गया. जी.एस.टी. के कारण रजाइयां महंगी होने से मांग गिर गई. बता दें कि जयपुरी रजाई पर शुरूआत में 18 और 28 प्रतिशत कर लगाया गया था. 1000 रुपए तक की रजाई पर 18 प्रतिशत और इससे अधिक कीमत की रजाई पर 28 प्रतिशत कर तय किया गया था. जयपुरी रजाई पर टैक्स घटकर क्रमश: 5 और 12 प्रतिशत हो गया. लेकिन व्यापारियों को यह कर भी ज्यादा लग रहा है.
आपको बता दें कि जयपुर से जापान, लंदन आदि जगहों पर जयपुरी रजाई का निर्यात किया जाता है लेकिन इस साल निर्यात में भी गिरावट आई है.धंधा मंदा होने से नकद की किल्लत भी आ रही है. जयपुरी रजाई का 90 प्रतिशत व्यवसाय अन्य राज्यों यू.पी., बिहार, असम, पंजाब, दिल्ली से है, केवल 10 प्रतिशत बिक्री राजस्थान में होती है.जयपुर में जयपुरी रजाई के कारोबार से डेढ़ से 2 लाख लोग जुड़े हुए हैं.
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