भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया में काफी बढ़ी है. लेकिन शेयर बाजार अपने आप में अर्थव्यवस्था नहीं है.यह बता आप सामान्य दिनों में भी नहीं भूलनी चाहिए.शेयर बाजारों की रोजमर्रा की चाल सिर्फ इतना बताती है कि कारोबारी जगत की सम्मिलित राय के मुताबिक अगले दिन, सप्ताह या महीने के दौरान कौन-कौन सी घटनाएं हो सकती हैं.जब वक्त बहुत अनिश्चित होता है तो यही समय महीने से घटकर सप्ताह, सप्ताह से घटकर दिन और उससे भी ज्यादा अनिश्चित हो तो अगली सुबह तक सिमट जाता है और कारोबारी जगत इससे आगे का अंदाजा नहीं लगाना चाहता है.जहां तक आजकल शेयर बाजारों का हाल है, तो कारोबारियों का प्रमुख मकसद अगले कारोबारी सत्र तक खुद को बाजार में बरकरार रखना है.
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आपकी जानकारी के लिए बता दे कि जब Sensex या Nifty 30 या 40 प्रतिशत टूट जाए, बाजार के कारोबारियों का विचलित होना स्वाभाविक है.लेकिन बाजारों के इतना टूट जाने को कोई इससे जोड़कर देखने लगे कि अगले दो-तीन वषों में इकोनॉमी की दशा क्या होगी, तो इसे समझदारी भरा अंदाजा कतई नहीं कह सकते हैं.बाजार में एक सर्किट लग गया या दो-तीन, इससे बहुत ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है.सर्किट लगना तो सिर्फ एक संख्या है, जो यह बताता है कि बाजार के चंद केंद्रित खिलंदड़ अगली सुबह तक की क्या-क्या संभावित घटनाएं देखते हैं.और ये घटनाएं भी असल नहीं, बल्कि उनके पूर्वानुमान हैं.दिलचस्प यह है कि शेयर बाजारों की पिछले कुछ दिनों की जो चाल रही है, उसे देखकर यही कहा जा सकता है कि पिछले दिनों के ऐसे सभी आकलन पूरी तरह अनुमान साबित हुए हैं.और पिछले कुछ दिनों के दौरान शेयर बाजारों में जिस तरह की अस्थिरताएं दिखी हैं, उससे सिर्फ यह पता चलता है कि महज अनुमानों के आधार पर निवेशकों ने शेयर बाजारों की दुर्गति कर दी.
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अच्छी कमाई के लिए जिन बचतकर्ताओं ने इक्विटी आधारित सेविंग्स उपकरणों में पूंजी लगा रखी है वे सब सदमे में हैं.यह बेहद स्वाभाविक भी है क्योंकि उन्हें लग रहा है कि शेयर बाजारों में पिछले दिनों की उठापटक इस बात का संकेत है कि भविष्य में भारतीय अर्थव्यवस्था के साथ कुछ बुरा, बहुत बुरा होने वाला है.यह कतई सही नहीं है.मैं यह नहीं कह रहा कि परिस्थितियां बुरी नहीं होंगी या नहीं हो सकतीं.मैं सिर्फ यह कह रहा हूं कि इसकी भविष्यवाणी का कोई आधर नहीं है.शेयर बाजारों में इस वक्त जो भी हो रहा है उसका कारण बेहद स्पष्ट है.ये कारण अंदरुनी नहीं हैं, बाहरी हैं.यह एक प्राकृतिक आपदा है, जो एक साथ दुनियाभर के देशों में एक साथ प्रकट हुई है.इसके वैश्विक स्वरूप के चलते ही इसे वित्तीय रूप में समझना और इसका सामना करना लगभग असंभव है.एक बार वर्ष 2007-08 के दौर की वैश्विक आर्थिक मंदी के बारे में सोचिए.उस समय दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाओं को मंदी से उबरने का एक ही तरीका समझ में आया - इकोनॉमी में पूंजी डालिए, कारोबार को चलाइए और खपत बढ़ाइए ताकि इकोनॉमी का पहिया चल निकले.हालांकि इसके कई दुष्परिणाम भी सामने आए, लेकिन सबसे बड़ा फायदा यह हुआ कि पूंजी का चक्र घूमता रहा और कई देश ग्लोबल आर्थिक सुस्ती से उबर गए.
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