नई दिल्ली: पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की बेटी शर्मिष्ठा मुखर्जी ने एक बार फिर कांग्रेस पार्टी के दोहरे रवैये पर तीखा प्रहार किया है। इस बार उनका गुस्सा उस वक्त फूटा, जब पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के लिए राष्ट्रीय स्मारक बनाने की मांग कांग्रेस द्वारा की गई। शर्मिष्ठा ने इस मांग को लेकर सोशल मीडिया पर कांग्रेस की आलोचना करते हुए कहा कि उनके पिता के निधन के समय पार्टी ने न केवल शोक सभा आयोजित करने से इनकार किया, बल्कि उन्हें इस मामले में गुमराह भी किया।
शर्मिष्ठा मुखर्जी ने सोशल मीडिया पोस्ट के जरिए खुलासा किया कि जब उनके पिता का निधन हुआ, तो कांग्रेस ने शोक सभा के लिए कांग्रेस वर्किंग कमेटी (CWC) की बैठक बुलाने तक की जहमत नहीं उठाई। एक वरिष्ठ नेता ने उन्हें बताया कि राष्ट्रपतियों के लिए ऐसा नहीं किया जाता। लेकिन इस दावे को शर्मिष्ठा ने "झूठा और बेतुका" करार दिया। उन्होंने अपने पिता की डायरी का हवाला देते हुए बताया कि पूर्व राष्ट्रपति के.आर. नारायणन की मृत्यु के समय CWC की बैठक बुलाई गई थी और शोक संदेश उनके पिता प्रणब मुखर्जी ने ही तैयार किया था।
When baba passed away, Congress didnt even bother 2 call CWC 4 condolence meeting. A senior leader told me it’s not done 4 Presidents. Thats utter rubbish as I learned later from baba’s diaries that on KR Narayanan’s death, CWC was called & condolence msg was drafted by baba only https://t.co/nbYCF7NsMB
— Sharmistha Mukherjee (@Sharmistha_GK) December 27, 2024
उल्लेखनीय है कि प्रणब मुखर्जी ने अपनी किताब 'द कोएलिशन ईयर्स' में भी कांग्रेस के इस रवैये को उजागर किया था। उन्होंने लिखा था कि पार्टी के भीतर गांधी परिवार से बाहर के नेताओं को अक्सर नजरअंदाज किया जाता था। मुखर्जी ने यह भी जिक्र किया कि कैसे कांग्रेस नेतृत्व ने उनके प्रधानमंत्री बनने के रास्ते में रोड़े अटकाए, जबकि उनके पास वरिष्ठता और अनुभव दोनों थे। उनकी इस उपेक्षा का मुख्य कारण यह था कि वे गांधी परिवार से ताल्लुक नहीं रखते थे और ना ही उनकी कही हर बात मानते थे।
शर्मिष्ठा ने इस मुद्दे पर संजय बारू की किताब *'द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर'* का जिक्र किया। इस किताब में बारू ने बताया है कि कैसे कांग्रेस नेतृत्व ने अपने ही पूर्व प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव को उपेक्षित किया। नरसिम्हा राव, जिन्होंने देश को आर्थिक सुधारों की दिशा में आगे बढ़ाया, उन्हें मृत्यु के बाद भी वह सम्मान नहीं दिया गया, जिसके वे हकदार थे। कांग्रेस ने उनके लिए कभी राष्ट्रीय स्मारक बनाने की पहल नहीं की और ना ही उनके पार्थिव शरीर को कांग्रेस हेडक्वार्टर में रखने की अनुमति दी गई। क्योंकि, वे भी गांधी परिवार की हाँ में हाँ मिलाने वाले नेता नहीं थे।
शर्मिष्ठा ने कांग्रेस के पूर्व नेता सीआर केसवन का हवाला देते हुए कहा कि कांग्रेस ने हमेशा उन नेताओं को किनारे कर दिया जो गांधी परिवार के करीबी नहीं थे। केसवन ने भी पार्टी के इसी रवैये से परेशान होकर कांग्रेस छोड़ दी थी। यह विवाद तब शुरू हुआ, जब कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के लिए राष्ट्रीय स्मारक बनाने की मांग करते हुए प्रस्ताव पारित किया। शर्मिष्ठा ने इसे कांग्रेस का दिखावा बताते हुए सवाल उठाया कि जब उनके पिता प्रणब मुखर्जी का निधन हुआ, तब पार्टी ने ऐसा सम्मान क्यों नहीं दिया? हालांकि, केंद्र सरकार ने मनमोहन सिंह के स्मारक की मंजूरी दे दी है।
शर्मिष्ठा मुखर्जी के आरोप कांग्रेस की पुरानी आदतों की ओर इशारा करते हैं। पार्टी पर अक्सर यह आरोप लगता रहा है कि वह केवल गांधी परिवार के सदस्यों या उनके करीबी नेताओं को ही प्राथमिकता देती है, जो उनकी बात बिना किसी सवाल के मानते हैं। प्रणब मुखर्जी, पी.वी. नरसिम्हा राव और अन्य कई वरिष्ठ नेताओं के साथ किए गए व्यवहार ने इन आरोपों को और मजबूती दी है।
यह विवाद केवल एक स्मारक तक सीमित नहीं है, बल्कि यह कांग्रेस के भीतर लंबे समय से चली आ रही राजनीति और सत्ता के केंद्रीकरण का प्रतीक है। शर्मिष्ठा मुखर्जी के इस बयान ने पार्टी के नेतृत्व पर सवाल खड़े कर दिए हैं, और यह बहस छेड़ दी है कि कांग्रेस को अपनी नीतियों और रवैये पर आत्ममंथन करने की जरूरत है।