बैंगलोर: सूखा राहत के लिए विलंबित धनराशि को लेकर केंद्र और कर्नाटक सरकार के बीच खींचतान के बीच, केंद्र ने खरीफ 2023 के लिए सूखा राहत जरूरतों को पूरा करने के लिए कर्नाटक को 3,454 करोड़ रुपये जारी करने की मंजूरी दे दी है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, यह निर्णय गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में एक उच्च शक्ति समिति द्वारा धन जारी करने के लिए हरी झंडी दिए जाने के बाद आया है।
प्रारंभ में, कर्नाटक सरकार ने सूखे से संबंधित चुनौतियों से निपटने के लिए केंद्र से 18,174 करोड़ रुपये की बड़ी राशि का अनुरोध किया था, जिसमें अपर्याप्त वर्षा के कारण फसल के नुकसान का सामना करने वाले किसानों को मुआवजा भी शामिल था। हालाँकि, धनराशि जारी होने में देरी से केंद्र और कांग्रेस के नेतृत्व वाली राज्य सरकार के बीच वाकयुद्ध शुरू हो गया। कर्नाटक सरकार ने केंद्र पर राज्य की दुर्दशा की उपेक्षा करने का आरोप लगाया, जबकि केंद्र सरकार ने तर्क दिया कि कर्नाटक के राहत प्रयासों के लिए राज्य आपदा राहत कोष में पर्याप्त धन उपलब्ध था।
गतिरोध का सामना करते हुए, कर्नाटक सरकार ने धन जारी करने में तेजी लाने के लिए हस्तक्षेप की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। राज्य की याचिका के जवाब में, केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को कर्नाटक के लिए राहत के संबंध में सकारात्मक निर्णय का आश्वासन दिया। इस बीच, राजस्व मंत्री कृष्णा बायरे गौड़ा ने सोमवार (22 अप्रैल) को कहा कि सुप्रीम कोर्ट को केंद्र का आश्वासन राज्य के किसानों की जीत है। गौड़ा ने संवाददाताओं से कहा, "केंद्र को राज्य के किसानों को फसल नुकसान के मुआवजे के रूप में तुरंत पैसा जारी करना चाहिए।"
कहाँ गया कर्नाटक सरकार का धन ?
बता दें कि, कांग्रेस ने कर्नाटक विधानसभा चुनाव के दौरान मुफ्त के चुनावी वादे किए थे, जिसके बाद वो सत्ता में तो आ गई, लेकिन इन गारंटियों को पूरा करने में सरकारी ख़ज़ाने पर बोझ बढ़ गया। एक बार जब कांग्रेस विधायकों ने अपने क्षेत्रों में विकास कार्य के लिए राज्य सरकार से धन माँगा, तो डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार ने ये कहते हुए मना कर दिया कि चुनावी गारंटियों को पूरा करने में हमें फंड लगाना पड़ा है, इसलिए अभी विकास कार्यों के लिए पैसा नहीं दे सकते। अब जब राज्य सूखे से जूझ रहा है, तो राज्य सरकार ने केंद्र से आर्थिक मदद मांगी थी। केंद्र सरकार ने एक हफ्ते में धनराशि जारी करने की बात कही थी। हालाँकि, कांग्रेस के चुनावी वादों पर भी अर्थशास्त्रियों ने चिंता जताई थी कि मुफ्त की चीज़ों से सरकारी ख़ज़ाने पर बोझ बढ़ेगा और बाकी विकास कार्यों के लिए पैसा नहीं बचेगा, लेकिन उस समय पार्टी ने इन बातों को नज़रअंदाज़ कर दिया था। यही नहीं, सरकार बनने के बाद कांग्रेस ने अपनी मुफ्त की 5 चुनावी गारंटियों को पूरा करने के लिए SC/ST वेलफेयर फंड से 11 हजार करोड़ रुपये निकाल लिए थे।
बता दें कि, कर्नाटक शेड्यूल कास्ट सब-प्लान और ट्रायबल सब-प्लान एक्ट के मुताबिक, राज्य सरकार को अपने कुल बजट का 24.1% SC/ST के उत्थान के लिए खर्च करना पड़ता है। लेकिन उन 34000 करोड़ में से भी 11000 करोड़ रुपए राज्य सरकार ने निकाल लिए। इसके बाद राज्य सरकार ने अल्पसंख्यकों के लिए एक योजना शुरू की, जिसमे उन्हें वाहन खरीदने पर 3 लाख तक की सब्सिडी देने का ऐलान किया था। उस योजना के अनुसार, यदि कोई अल्पसंख्यक 8 लाख रुपये की कार खरीदता है, तो उसे मात्र 80,000 रुपये का शुरूआती भुगतान करना होगा। 3 लाख रुपए राज्य सरकार देगी, यही नहीं बाकी पैसों के लिए भी बैंक ऋण सरकार ही दिलाएगी। वहीं, इस साल के बजट में कांग्रेस सरकार ने वक्फ प्रॉपर्टी के लिए 100 करोड़ और ईसाई समुदाय के लिए 200 करोड़ आवंटित किए हैं। जानकारों का कहना है कि, धन का सही प्रबंधन नहीं करने के कारण, राज्य सरकार का खज़ाना खाली हो गया और आज सूखे से जूझ रहे कर्नाटक को राहत देने के लिए कांग्रेस सरकार के पास पैसा नहीं बचा है और केंद्र ने उसे 3,454 करोड़ रुपये जारी किए हैं।
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