बैंगलोर: कर्नाटक में 2022 में हुई हुबली हिंसा के मामले को कांग्रेस सरकार ने वापस लेने का निर्णय लिया है। इस मामले में ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लीमीन (AIMIM) के नेताओं समेत कई अन्य लोगों को आरोपी बनाया गया था। इन पर आरोप था कि इन्होंने इस्लामी कट्टरपंथियों की भीड़ को इकट्ठा करके हुबली पुलिस थाने पर धावा बोला और पुलिसकर्मियों पर हमला किया। इस हिंसा के दौरान न केवल पुलिस थाने और पुलिस वाहनों पर पथराव किया गया, बल्कि पास के एक हनुमान मंदिर और अस्पताल को भी निशाना बनाया गया, जिससे काफी नुकसान हुआ। इस घटना में 12 पुलिसकर्मी भी घायल हुए थे।
The Congress Govt in Karnataka has withdrawn the Old Hubballi police station riot case, despite opposition from the Law and Police departments.
— Amit Malviya (@amitmalviya) October 11, 2024
The case, filed in Oct 2022, involved AIMIM leaders Mohammed Arif and others, accused of leading a large mob of Muslims, that attacked… pic.twitter.com/LdJ8zqegNM
यह घटना 16 अप्रैल 2022 को हुई थी, जब हनुमान जयंती के बाद सोशल मीडिया पर बवाल मचा था। इस्लामी कट्टरपंथियों की भीड़ ने सड़कों पर उतरकर उपद्रव किया और पुलिस को निशाना बनाया। इस मामले में पुलिस ने 100 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया था। जांच में यह भी सामने आया कि AIMIM नेता मौलाना वसीम ने भीड़ को उकसाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने दरगाह पर उन्मादी भाषण दिया था और पुलिस स्टेशन के बाहर भी मौजूद थे। इसके अलावा, हुबली-धारवाड़ नगर निगम के पार्षद नजीर अहमद को भी गिरफ्तार किया गया, जो AIMIM पार्टी के सदस्य थे और जिनके तार पुलिस थाने पर हुई पत्थरबाजी से जुड़े मिले थे।
यह @RahulGandhi की मोहब्बत की असली दुकान है
— Dr.Radha Mohan Das Agrawal (@AgrawalRMD) October 11, 2024
कर्नाटक के हुबली पुलिस स्टेशन में घुसकर तोड़फोड़ और पुलिसकर्मियों को जख्मी करने वाले मुस्लिम कट्टरपंथियों पर दर्ज अपराधिक मुकदमा वापस लेगी @BJP4Karnataka @AmitShah @HMOIndia pic.twitter.com/bytiCYXkLz
हालांकि, अब कांग्रेस सरकार ने इस केस को वापस लेने का निर्णय लिया है। इस संबंध में डिप्टी चीफ मिनिस्टर डीके शिवकुमार ने 4 अक्टूबर 2023 को अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक को एक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने केस वापस लेने की अपील की। इस पत्र के बाद राज्य के गृह विभाग को निर्णय की मंजूरी दी गई। यह निर्णय कर्नाटक की राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में देखा जा रहा है।
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