नई दिल्ली: 28 मई 2023 रविवार को पीएम नरेंद्र मोदी संसद के नए भवन का उद्घाटन करने वाले हैं। नई संसद में स्वतंत्र भारत के राजदंड सेंगोल (Sengol) को भी स्थापित किया जाएगा। इतिहास में गुम हो चुका बेहद महत्वपूर्ण सेंगोल 24 मई 2023 को उस समय सुर्ख़ियों में आया था, जब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इसे नई संसद में स्थापित करने के बारे में जानकारी दी थी। सेंगोल (Sengol) अंग्रेजों से भारत के प्रथम पीएम जवाहर लाल नेहरू को हुई सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक है। मगर, अब कांग्रेस सेंगोल से संबंधित दावों को झूठ बता रही है।
Is it any surprise that the new Parliament is being consecrated with typically false narratives from the WhatsApp University? The BJP/RSS Distorians stand exposed yet again with Maximum Claims, Minimum Evidence.
— Jairam Ramesh (@Jairam_Ramesh) May 26, 2023
1. A majestic sceptre conceived of by a religious establishment in… pic.twitter.com/UXoqUB5OkC
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने ट्वीट करते हुए दावा किया है कि 'नई संसद को व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी से मिले ज्ञान के आधार पर दूषित किया जा रहा है। भाजपा-RSS बगैर सबूत के तथ्यों को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत कर रही है।' रमेश ने कहा कि यह सही है कि अगस्त 1947 में नेहरू को Sengol सौंपा गया था, मगर इसके सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक होने का कोई दस्तावेजी प्रमाण नहीं है।' जिसके बाद केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने ट्वीट करते हुए कांग्रेस को प्रमाण के साथ-साथ आइना भी दिखाया है कि, जिस कांग्रेस की आज़ाद भारत में सबसे पहले सरकार बनी और जिसके नेता पंडित नेहरू को Sengol सौंपा गया, वही आज Sengol और उससे जुड़े तथ्यों को भूल गई। केंद्रीय मंत्री हरदीप पूरी ने अपने ट्वीट में टाइम मैगजीन का एक आर्टिकल शेयर किया है। यह लेख 25 अगस्त 1947 का प्रकाशित हुआ था। यानी हमें आज़ादी मिलने के 10 दिन बाद। इसमें 14 अगस्त को पंडित नेहरू को सेंगोल सौंपे जाने की काफी जानकारी दर्ज है।
ये कहाँ आ गए हम!
— Hardeep Singh Puri (@HardeepSPuri) May 26, 2023
Time Magazine 1947- a must read for those who wish they had built the magnificent new Parliament instead of PM @narendramodi Ji on occasion of #AzadiKaAmritMahotsav & stoop to boycott the Temple of Democracy. https://t.co/HymazFMY4Y
इस लेख के शुरु में बताया गया है कि 'ऐतिहासिक दिन (आज़ादी) के लिए भारतीय अपने अपने अराध्यों का आभार प्रकट कर रहे हैं। विशेष पूजा प्रार्थना हो रही है। भजन आदि सुनाई दे रहे हैं। लेख में आगे बताया गया है कि आज़ाद भारत के पहले पीएम बनने से पहले जवाहर लाल नेहरू धार्मिक अनुष्ठान में व्यस्त थे। दक्षिण भारत के तंजौर से मुख्य पुजारी श्री अंबलवाण देसिगर के 2 प्रतिनिधि नई दिल्ली पहुंचे थे। श्री अंबलवाण ने विचार किया कि प्राचीन भारतीय राजाओं की तरह, भारत सरकार के पहले भारतीय प्रमुख के तौर पर नेहरू को पवित्र हिंदुओं से सत्ता का प्रतीक प्राप्त करनी चाहिए। लेख में आगे कहा गया है पुजारी के प्रतिनिधि के साथ नागस्वरम बजाने वाले भी थे। यह वाद्य यंत्र बाँसुरी का विशिष्ट भारतीय प्रकार है। संन्यासियों की तरह ही पुजारी के दोनों प्रतिनिधियों के बाल बड़े थे और उनके सिर और सीने पर पवित्र राख लगी हुई थी। वे 14 अगस्त 1947 की शाम धीरे-धीरे नेहरू के घर की ओर बढ़े।
टाइम्स मैगज़ीन के आर्टिकल में कहा लिखा है कि, 'पुजारियों के नेहरू के घर आगमन होने के बाद नागरस्वम बजता रहा। वे पूरे सम्मान के साथ घर में दाखिल हुए। दो युवा उन्हें बड़े पंखे से हवा दे रहे थे। इनमे से एक संन्यासी ने 5 फीट लंबा सोने का राजदंड लिया हुआ था। जिसकी मोटाई 2 इंच थी। उन्होंने तंजौर से लाए पवित्र जल को नेहरू पर छिड़का और उनके माथे पर पवित्र भस्म लगाई। इसके बाद उन्होंने नेहरू को पीतांबर ओढ़ाया और उन्हें स्वर्ण राजदंड सौंपा। उन्होंने नेहरू को पके हुए चावल भी दिए, जिसे तड़के दक्षिण भारत में भगवान नटराज को अर्पित किया गया था और फिर विमान द्वारा दिल्ली लाया गया था।'
लेख में यह भी लिखा गया है कि इस अनुष्ठान के बाद नेहरू और अन्य लोग संविधान सभा अध्यक्ष राजेंद्र प्रसाद के आवास पर पहुंचे। लौटने के बाद 4 केले के पौधे अस्थायी मंदिर के खंभे के रूप में लगाया गया। पवित्र अग्नि के ऊपर हरी पत्तियों की छत बनाई गई और ब्राह्मण पुजारी शामिल हुए। महिलाओं ने भजन गाए। संविधान बनाने वाले और मंत्री बनने जा रहे लोग पुजारी के सामने से गुजरे और उनपर पवित्र जल का छिड़काव किया गया। एक बुजुर्ग महिला ने हर पुरुष के माथे पर लाल टीका लगाया। इसके बाद रात के 11 बजे सभी संविधान सभा हॉल में एकत्रित हुए। इसके बाद ही नेहरू का ‘जब आधी रात को दुनिया सो रही है…’ वाला प्रसिद्ध भाषण हुआ था।
कैसे सामने आया 1947 से 'गायब' हुआ Sengol ?
बता दें कि सेंगोल इतिहास के पन्नों में गुम हो चुका था, नई पीढ़ियों को इस बारे में कुछ पता ही नहीं था, यहाँ तक कि कई प्रधानमंत्रियों का भी इस तरफ ध्यान ही नहीं गया। पीएम नरेंद्र मोदी को इसकी खबर कुछ वर्ष पूर्व एक वीडियो से लगी थी। 5 फीट लंबे सेंगोल पर ‘वुम्मिडी बंगारू ज्वेलर्स (VBJ)’ ने वीडियो बनाई थी। इसके मैनेजिंग डायरेक्टर आमरेंद्रन वुम्मिडी ने बताया कि उन्हें सेंगोल के संबंध में खुद भी नहीं पता था। उन्होंने 2018 में एक मैग्जीन में इसका जिक्र देखा और जब इसे तलाश किया, तो 2019 में उन्हें ये इलाहाबाद के एक म्यूजियम में रखा हुआ मिला। म्यूजियम में इसे नेहरू की ‘स्वर्ण छड़ी’ के रूप में दर्शाया जा रहा था।
ध्यान रहे कि, सत्ता हस्तांतरण का यह प्रतीक चोल राजवंश के काल से संबंधित है। चोल राजवंश भारत का सबसे प्राचीन और सबसे लंबे समय तक शासन करने वाला राजवंश था, जो आज के बांग्लादेश, थाईलैंड, मलेशिया, इंडोनेशिया, सिंगापुर, कंबोडिया, वियतनाम तक फैला हुआ था। यही कारण है कि, दुनिया का सबसे बड़ा मुस्लिम मुल्क होने के बावजूद इंडोनेशिया में हज़ारों हिन्दू मंदिर हैं और वहां के नोटों पर भी श्री गणेश की तस्वीर हैं, वहां के लोग मानते हैं कि उन्होंने केवल अपनी पूजा पद्धति (धर्म) बदली है, लेकिन उनकी सांस्कृतिक जड़ें भारत से ही जुड़ी हुईं हैं। इसी तरह थाईलैंड के राजा को आज भी 'राम' कहा जाता है। उस दौर में एक चोल राजा से दूसरे चोल राजा को ‘सेंगोल’ देकर सत्ता हस्तांतरण की रीति निभाई जाती थी। ये एक प्रकार से राजदंड था, शासन में न्यायप्रियता का प्रतीक। जिस पर अब भारत की सबसे पुरानी राजनितिक पार्टी ने सवाल उठाए हैं।
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