पायलट की पदयात्रा से बेफिक्र कांग्रेस हाईकमान! लेकिन 'निष्पक्ष' पत्रकार बेहद परेशान, आखिर क्यों ?

पायलट की पदयात्रा से बेफिक्र कांग्रेस हाईकमान! लेकिन 'निष्पक्ष' पत्रकार बेहद परेशान, आखिर क्यों ?
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जयपुर: राजस्थान में इसी साल विधानसभा चुनाव होना है, और 5 वर्षों से तमाम तरह के सियासी हमले झेल चुके और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के मुंह से 'गद्दार, निकम्मा' जैसे शब्द सुन चुके सचिन पायलट आर-पार के मूड में नज़र आने लगे हैं. उनसे राजस्थान कांग्रेस अध्यक्ष का पद छीन लिया गया, डिप्टी सीएम के पद से भी हटा दिया गया, जबकि राजस्थान की सत्ता में कांग्रेस को लाने में पायलट की अहम भूमिका रही थी, यह टीस उनके मन में भी है और उनके समथकों के मन में भी और अब उन्होंने लड़ने का फैसला किया है. वे भ्रष्टाचार का मुद्दा लेकर अपनी सरकार के खिलाफ उतरे हैं. दरअसल, कांग्रेस के दिग्गज नेता और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट आज गुरुवार (11 मई) से 5 दिवसीय जनसंघर्ष यात्रा शुरू कर रहे हैं. जिसे सीधे तौर पर सीएम अशोक गहलोत के खिलाफ मोर्चा ही माना जा रहा है. लेकिन, अभी तक सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका वाड्रा या खुद गहलोत जैसे दिग्गज नेता पायलट को मनाने की कोशिश करते नहीं दिखे हैं. ऐसा लगता है, जैसे कांग्रेस पायलट को लेकर निश्चिन्त है, मगर कुछ पत्रकारों को पायलट के बागी क़दमों से इस कदर बुरा लग रहा है, जैसे वे कांग्रेस के स्थायी सदस्य हों. 

पायलट के बगावती तेवरों की जितनी चिंता खुद कांग्रेस हाईकमान करता हुआ नहीं दिख रहा, उससे कहीं अधिक परेशान खुद को 'निष्पक्ष' बोलने वाले पत्रकार नज़र आ रहे हैं. इनके कुछ ट्वीट देखने से आपको भी यही लगेगा कि, यह ट्वीट किसी पत्रकार ने नहीं बल्कि, कांग्रेस के ही किसी बड़े और विश्वसनीय नेता ने किए हैं. अब सबसे पहले यूट्यूबर पत्रकार अजित अंजुम को ही ले लीजिए, जिन्होंने 2022 के यूपी चुनाव में ट्वीट करते हुए वादा किया था कि, यदि योगी आदित्यनाथ वापस सीएम बनते हैं, तो वे पत्रकारिता छोड़कर दिल्ली में चिकन पकोड़े की दुकान खोल लेंगे. हालाँकि, उन्होंने अपनी उस बात पर अमल तो नहीं किया, लेकिन अब वे कांग्रेस के भविष्य को लेकर चिंतित नज़र आने लगे हैं और उन्हें यह भी डर है कि कहीं पायलट-गहलोत के इस झगड़े में भाजपा न जीत जाए. 

 

अजित अंजुम ने 9 मई को ट्वीट करते हुए लिखा है कि, 'हम तो डूबेंगे, तुमको भी ले डूबेंगे की तर्ज़ पर सचिन पायलट लगातार गहलोत के लिए गड्ढा खोदने में लगे हैं. सचिन अपनी ही पार्टी के सीएम के लिए नेता विपक्ष से भी ज़्यादा मुसीबत खड़ी करते जा रहे हैं. चुनाव से कुछ महीने पहले की ये आपसी धींगामुश्ती बीजेपी की राह आसान ही करेगी. पता नहीं क्यों कांग्रेस हाईकमान न तो दोनों के बीच सुलह करा पा रहा है , न ही किसी को चुप करा पा रहा है. कांग्रेस नेतृत्व के लिए तमाशबीन बने रहने की मजबूरी जो भी हो लेकिन सियासी तौर पर नुक़सान का स्केल दिनों दिन बड़ा होता जा रहा है.' इन्हे ये दुःख हो रहा है कि, कांग्रेस क्यों कुछ नहीं कर रही, ऐसे में तो भाजपा जीत जाएगी. ये बिलकुल वैसी तड़प है, जैसी एक समर्पित कार्यकर्ता की होती है.

 

उधर, अन्ना के आंदोलन से निकले सीएम अरविंद केजरीवाल के पुराने साथी और 'निष्पक्ष' पत्रकार आशुतोष को भी देख लीजिए. पायलट की पदयात्रा पर उनका भी ट्वीट सामने आया है. उन्होंने लिखा है कि, 'सचिन पाइलट ने तय कर लिया है कि वो तो डूबेंगे लेकिन कांग्रेस को भी डुबायेंगे, अगर अब भी कांग्रेस आलाकमान एक्शन नहीं लेता तो फिर राजस्थान में कांग्रेस का सफ़ाया तय है. इसके लिये आलाकमान के अलावा कोई और ज़िम्मेदार नहीं होगा!' आशुतोष जी तो, सचिन पायलट पर एक्शन तक की वकालत कर रहे हैं, और इन्हे भी राजस्थान   में कांग्रेस के हारने का डर लग रहा है. यही नहीं, कर्नाटक में मतदान से एक दिन पहले पायलट के प्रेस कांफ्रेंस करने पर भी उन्होंने सवाल उठाए थे. आशुतोष जी का ट्वीट था कि, 'सचिन पायलट चाहते हैं कि कांग्रेस कर्नाटक भी हार जाये ? क्यों वोटिंग के एक दिन पहले की प्रेस कॉन्फ़्रेंस?' समझ नहीं आता, एक निष्पक्ष पत्रकार किसी सियासी दल की जीत के लिए इतना लालायित क्यों है और उस सियासी दल से पत्रकार का ऐसा क्या ख़ास रिश्ता है ? 

 

इसके अलावा भी कुछ ऐसे पत्रकार हैं, जो पायलट के कदम से दुखी हैं और चाहते हैं कि, जल्द से जल्द यह मतभेद सुलझ जाए ताकि (उनकी) कांग्रेस को चुनाव में नुकसान न उठाना पड़े. गौर करने वाली बात ये भी है कि, यही पत्रकार कहते हैं कि, 'मीडिया का काम होता है, सरकार से सवाल करना'. मगर, जब आज पायलट अपनी सरकार से सवाल कर रहे हैं, तो 'निष्पक्ष' पत्रकार उनका समर्थन करने की बजाए उल्टा उनपर एक्शन लेने की वकालत कर रहे हैं, ताकि एक ख़ास सियासी दल को नुकसान न हो. एक ब्रम्हवाक्य याद रखें, चुनाव में कोई भी जीते, कोई भी हारे, इसका फैसला जनता के हाथों में होता है, पत्रकार का काम होता है, हर बात को 'पूरी सच्चाई' के साथ जनता के सामने रख देना. फिर चाहे किसी दल को नुकसान हो या फायदा. इससे पत्रकार का कोई लेना देना नहीं. नफा-नुक्सान की फ़िक्र करना पार्टी के नेताओं का काम है, वो उन्हें ही करने दें. 

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