'कांग्रेस ने खुद भिंडरावाले को भेजकर पैदा किया खालिस्तान मुद्दा, क्योंकि..', पूर्व RA&W अफसर GBS सिद्धू ने खोला चौंकाने वाला राज़

'कांग्रेस ने खुद भिंडरावाले को भेजकर पैदा किया खालिस्तान मुद्दा, क्योंकि..', पूर्व RA&W अफसर GBS सिद्धू ने खोला चौंकाने वाला राज़
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नई दिल्ली: भारत की ख़ुफ़िया एजेंसी RA&W के पूर्व स्पेशल सेक्रेटरी GBS सिद्धू ने खालिस्तान के मुद्दे पर प्रतिक्रिया देते हुए कई अहम खुलासे किए हैं। उन्होंने दावा किया है कि ‘ऑपरेशन भिंडरांवाले’ का आगाज़ और इसका प्रबंधन 1, अकबर रोड स्थित प्रधानमंत्री आवास में बैठे कुछ नेताओं द्वारा किया जा रहा था, जिनमें ज्ञानी जैल सिंह, संजय गाँधी, कमलनाथ और इंदिरा गाँधी पूरी तरह शामिल थीं। RA&W के पूर्व स्पेशल सेक्रेटरी GBS सिद्धू ने बताया कि ये सब 1978 के मध्य में शुरू हुआ, जब ज्ञानी जेल सिंह और संजय गाँधी ने अकाली दल और जनता पार्टी के बीच टकराव पैदा करने का षड्यंत्र रचा। बता दें कि, अकाली दल पंजाब में सिखों के अधिकारों के लिए लड़ने वाली पार्टी है, वहीं जनता पार्टी को हिंदूवादी पार्टी माना जाता था, हालाँकि, दोनों ही पार्टियां राष्ट्रवाद में मुद्दे पर समान विचार रखती थीं और इसलिए उनमे अच्छे संबंध थे। GBS सिद्धू का कहना है कि, इन्ही दोनों में विभाजन पैदा करने के लिए कांग्रेस ने साजिश के तहत खालिस्तान का मुद्दा खड़ा किया, भिंडरावाले को प्लांट किया, ताकि सिखों में कट्टरता आए और वो अलग देश की मांग करें, जबकि हिन्दू स्वाभाविक तौर पर इसका विरोध करेंगे ही और इस तरह दोनों में बैर बढ़ेगा। इसी बैर और विभाजन का फायदा कांग्रेस को चुनाव में मिलेगा। 

 RA&W के पूर्व अधिकारी सिद्धू ने बताया कि, उन लोगों (जेल सिंह और संजय गांधी) ने इसके लिए ‘एक हाईप्रोफाइल’ संत (भिंडरावाले) को अपनी ओर से पंजाब भेजने की बात कही। उनकी साजिश थी कि वो कथित संत अकाली दल की नरम नीतियों पर कुछ कहेगा, तो उसके जवाब में जनता पार्टी की ओर से भी प्रतिक्रिया आएगी और आख़िरकार दोनों एक-दूसरे से नाता तोड़ लेंगे। स्पष्ट शब्दों में कहें तो, कांग्रेस ने हिन्दुओं को डराने के लिए भिंडरांवाले को प्लांट किया और खालिस्तान जैसे मुद्दे को पैदा किया, जिससे देश की एक बड़ी आबादी ये सोचने लगे कि देश की अखंडता खतरे में है।

सिद्धू ने आगे बताया कि कमलनाथ ने उस वक़्त कट्टर सिख संतों की भर्ती करने की बात कही थी। उन्होंने बताया कि पुलिस-प्रशासन से लेकर तमाम लोग भिंडरांवाले को ‘सर/जनाब’ कहा करते थे। उसे पूरी योजना के साथ एक बड़ा आदमी बनाया गया था। उन्होंने बताया कि इंदिरा गाँधी खुद कहती थीं कि उनकी हत्या हो सकती है, मगर उन्हें इसकी कोई फ़िक्र नहीं है। R&AW के पूर्व अधिकारी ने कहा कि उस समय गृह मंत्री रहे ज्ञानी जैल सिंह ने मीडिया में भिंडरांवाले की छवि गढ़ी थी।

GBS सिद्धू ने खुलासा करते हुए बताया कि उस समय में उन्हें कनाडा में भी भेजा गया था, उस दौरान उन्हें पता चला कि वहाँ केवल दो ही लोग थे जो खालिस्तान की बातें किया करते थे। 1979 में भारत लौटने के बाद जब उन्हें RA&W में भेजा गया, तब इस एजेंसी की अलग से कोई बिल्डिंग तक नहीं थी। उन्होंने बताया कि इसी दौरान सिख कट्टरवाद और ISI (पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेंसी) के रिश्तों की जाँच के लिए RA&W का एक नया विभाग दिसंबर 1980 में स्थापित किया गया, जबकि उस वक़्त ऐसा कोई मामला आया ही नहीं था।

पूर्व रॉ अधिकारी ने आगे बताया कि, इसके बाद संजय गाँधी और जेल सिंह जैसे लोगों ने खालिस्तान को मुद्दा बनाने का फैसला लिया। इस दौरान सिद्धू को रॉ के नए ब्रांचों के लिए प्रस्ताव तैयार करने के निर्देश दिए गए, वो भी अमेरिका-यूरोप में उन जगहों पर जहाँ सिखों की जनसंख्या अधिक थी। जबकि सिद्धू जब कनाडा में थे, तो उन्हें 2 लोगों के अलावा खालिस्तान का कोई नामलेवा तक नहीं था। सिद्धू बताते हैं कि उन्हें बाद में पता चला कि उनका इस्तेमाल किया जा रहा है। उन्होंने ये भी बताया कि भिंडरांवाले को अरेस्ट करने के लिए भी पूरा षड्यंत्र रचा गया था।

सिद्धू ने आगे बताया कि, 'कांग्रेस ने अकाली दल से बातचीत करने का प्लान बनाया, ताकि उन्हें ऐसा लगे कि समस्या का निराकरण किया जा रहा है। दोनों में 26 दौर की वार्ता चली, जिनमें से कुछ में इंदिरा गाँधी ने भी हिस्सा लिया। संजय गाँधी ने 1985 से पहले के चुनाव भिंडरांवाले-खालिस्तान मुद्दे पर जीतने की प्लानिंग की थी। लेकिन, 1982 में हमें सूचना मिली कि इंदिरा गाँधी की जान जोखिम में है। भिंडरांवाले गोल्डन टेंपल में शिफ्ट हो गया था। उसे अरेस्ट करने की साजिश भी ऐसे रची गई, जैसे वो बहुत बड़ा शख्स था और उसे पकड़ना सरल नहीं था।' बता दें कि, भिंडरावाले को पकड़ने के लिए भारतीय सेना को ऑपरेशन ब्लू स्टार नामक बड़ा ऑपरेशन चलना पड़ा था और स्वर्ण मंदिर में सेना के घुसने से सिखों की भावनाएं आहत हो गई थी। यही आगे जाकर पूर्व पीएम इंदिरा गांधी की हत्या का कारण बनीं और फिर 1984 में कांग्रेस समर्थकों द्वारा सिखों का नरसंहार किया गया था।   

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