'सभी विवादित मस्जिदों के सर्वे रोके जाएं, माहौल बिगड़ रहा..', सुप्रीम कोर्ट पहुंचे कांग्रेस नेता

'सभी विवादित मस्जिदों के सर्वे रोके जाएं, माहौल बिगड़ रहा..', सुप्रीम कोर्ट पहुंचे कांग्रेस नेता
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नई दिल्ली: कांग्रेस पार्टी के दो नेताओं, आलोक शर्मा और प्रिया मिश्रा ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है, जिसमें उन्होंने विवादित मस्जिदों के सर्वे पर रोक लगाने की मांग की है। इन नेताओं का कहना है कि मजहबी स्थलों के सर्वे से जुड़ी याचिकाओं पर निचली अदालतों को आदेश देने से रोका जाए और संबंधित राज्यों को ऐसे आदेशों पर कार्रवाई से भी रोकने की अपील की गई है। उनका यह भी कहना है कि कुछ निचली अदालतें प्लेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 का उल्लंघन कर रही हैं, जो धार्मिक स्थलों के विवादों को लेकर पहले से तय नियमों के खिलाफ जा रही हैं। 

आलोक शर्मा और प्रिया मिश्रा ने अपनी याचिका में यह भी कहा है कि इन सर्वे कार्यों से साम्प्रदायिक तनाव और अशांति का माहौल बन सकता है। वे चाहते हैं कि सर्वे से संबंधित याचिकाओं की पहले उच्च न्यायालय द्वारा समीक्षा की जाए, और सिविल अदालतों को इन मामलों में जल्दबाजी में निर्णय लेने से रोका जाए। इसके अलावा, उन्होंने संभल, मथुरा कृष्ण जन्मभूमि, वाराणसी ज्ञानवापी और अजमेर दरगाह जैसे उदाहरणों का हवाला देते हुए कहा कि इन मामलों ने पहले भी समाज में अशांति उत्पन्न की थी। यह याचिका अधिवक्ता नरेंद्र मिश्रा के माध्यम से दायर की गई है, जो इन नेताओं का पक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं। 

अब सवाल यह उठता है कि कांग्रेस आखिर सर्वे को क्यों रोकना चाहती है? क्या यह सच्चाई को सामने लाने से डरने का मामला है? क्या यदि अतीत में कोई गलतियां हुईं, तो उन्हें सुधारने की कोशिश नहीं करनी चाहिए? यही नहीं, कांग्रेस का दोहरा चरित्र भी इस स्थिति में सामने आता है। एक ओर, कांग्रेस ने पूजा स्थल कानून लाकर हिंदू समुदाय को काशी और मथुरा जैसे प्राचीन मंदिरों पर दावा करने से रोक दिया, जबकि दूसरी ओर, वक्फ कानून के तहत एक विशेष समुदाय को संपत्तियों पर दावा करने की खुली छूट दी है, जबकि गैर-मुस्लिम समुदाय के लिए ऐसे दावे करना नामुमकिन बना दिया गया है।

इन दोनों कानूनों में स्पष्ट पक्षपाती रवैया दिखाई देता है, जिससे यह सवाल उठता है कि क्या यह साम्प्रदायिक सद्भाव के लिए सही है? क्या इन दोनों कानूनों में कोई न्यायसंगतता नहीं है, और क्या यह किसी एक समुदाय को दूसरे समुदाय से ऊपर रखने का प्रयास नहीं है? यानी हिन्दू, जैन, सिख अगर दावा करेंगे तो सांप्रदायिक तनाव फ़ैल जाएगा, और वक्फ कहीं भी दावा करेगा तो देश में शान्ति कायम होगी ? अदालत को इन दोनों कानूनों पर विचार करने की जरूरत है, ताकि सभी समुदायों के लिए संविधान में दिया गया समान न्याय का अधिकार सुरक्षित हो।   

 

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