रायपुर: शराब घोटाले में फंसे छत्तीसगढ़ के अफसरों को मनी लांड्रिंग एक्ट (PMLA) से राहत दिलाने के लिए कांग्रेस के राज्यसभा सांसद और वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। कांग्रेस नेता और वकील सिंघवी ने संविधान के अनुच्छेद 32 का उल्लेख करते हुए PMLA एक्ट पर ही सवाल उठा दिए और राहत की मांग की। मगर, शीर्ष अदालत में उनका दांव उलटा पड़ गया। सिंघवी ने जब कोर्ट की तल्ख टिप्पणी सुनने के बाद अपनी याचिका वापस लेने की गुजारिश की, तो डबल बेंच के साथ ED की ओर से कोर्ट में पैरवी कर रहे सॉलीसिटर जनरल तुषार मेहता और उनके सहयोगी एएसजी एसवी राजू ने भी उनको आड़े हाथ लेने में कोई कमी नहीं छोड़ी।
बता दें कि, बीते दिनों ही ED ने छत्तीसगढ़ शराब घोटाले को लेकर विशेष PMLA कोर्ट में अभियोजन रिपोर्ट दाखिल की है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि, तकरीबन 2,161 करोड़ रुपए के इस शराब घोटाले में छत्तीसगढ़ के अधिकारीयों के साथ ही कांग्रेस के नेता भी शामिल हैं। जिसके बाद यह मामला गरमा गया था और विपक्षी दल ने सवाल उठाया था कि, सीएम भूपेश बघेल के संरक्षण के बगैर राज्य में इतना बड़ा घोटाला कैसे हो सकता है ? अब PMLA एक्ट के अंदर ED किसी को अरेस्ट न कर ले या कोई बड़ी कार्रवाई न करे, इसलिए कांग्रेस नेता और वकील अभिषेक मनु सिंघवी, अपनी ही पार्टी की सरकार (छत्तीसगढ़ सरकार) के अधिकारीयों को राहत दिलवाने के लिए PMLA कानून पर सवाल उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे, लेकिन अदालत ने उन्हें फटकार लगा दी।
इस पर तुषार मेहता की भी कोर्ट से मांग करते हुए कहा कि वो अपने आदेश में इस प्रकार की याचिकाओं पर सख्त टिप्पणी करे। उनका कहना था कि कोर्ट को कड़ा कदम उठाना ही होगा, तभी ऐसी याचिकाएं रुकेंगी। एएसजी एसवी राजू भी कोर्ट में सुनवाई के दौरान तुषार मेहता के सुर में सुर मिलाते नज़र आए। जिसके बाद न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा ने छत्तीसगढ़ के अफसरों अख्तर और निरंजन दास की याचिका पर टिप्पणी करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट एक वैकल्पिक मंच बनता जा रहा है। अदालत ने कहा कि आरोपी उच्च न्यायालय जाकर वहां कानून के प्रावधानों को चुनौती देने की जगह सीधे सुप्रीम कोर्ट में पेश होकर समन को चुनौती दे रहे हैं। जस्टिस त्रिवेदी ने यहां तक कहा कि इस कोर्ट में जारी यह चलन परेशान करने वाला है।
सुप्रीम कोर्ट की अवकाशकालीन पीठ (Vacation Bench) ने कहा कि किसी कानून को चुनौती देने वाली इस तरह की याचिकाएं दाखिल कर राहत का आग्रह करना गलत है। अदालत ने आगे कहा कि कोर्ट यह टिप्पणी करने के लिए बाध्य है कि विजय मदनलाल फैसले के बावजूद धारा 15 व धारा 63 और PMLA के अन्य प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाले अनुच्छेद 32 के तहत इस तरह रिट दाखिल करना एक गलत चलन है।
बता दें कि, सर्वोच्च न्यायालय ने जुलाई 2022 में विजय मदनलाल चौधरी बनाम केंद्र सरकार के मामले में मनी लांड्रिंग एक्ट के तहत गिरफ्तारी, संपत्ति की कुर्की, तलाशी और जब्ती को लेकर ED की ताकतों को बरकरार रखा था। संविधान का अनुच्छेद 32 लोगों को यह अधिकार देता है कि अगर उन्हें लगता है कि उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है तो वो सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं। इसके तहत ही कांग्रेस नेता सिंघवी सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे।
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