कोलकाता: पश्चिम बंगाल कांग्रेस ने शुक्रवार (22 जून) को एक बैठक में अपनी राज्य कार्यसमिति को भंग कर दिया है, जिसमें बहरामपुर के पूर्व सांसद अधीर रंजन चौधरी के प्रदेश अध्यक्ष का पद भी शामिल है। कांग्रेस के राज्य प्रभारी गुलाम अहमद मीर की अगुवाई में हुई बैठक में दो प्रमुख प्रस्ताव पारित किए गए - एक राज्य में संगठनात्मक बदलाव पर और दूसरा राहुल गांधी से लोकसभा में विपक्ष के नेता का पद संभालने का आग्रह करने पर।
सूत्रों के अनुसार बैठक में एक प्रस्ताव पारित किया गया, जिसके तहत बंगाल प्रदेश कांग्रेस ने अपनी कार्यसमिति को भंग कर दिया, जिसमें अधीर रंजन चौधरी के प्रदेश अध्यक्ष का पद भी शामिल था। सूत्रों ने बताया कि प्रस्ताव कांग्रेस मुख्यालय और दिल्ली स्थित कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को भेजा गया है, ताकि वे अपनी इच्छानुसार अध्यक्ष पद सहित समिति की नियुक्ति या पुनर्नियुक्ति पर निर्णय ले सकें। बैठक के बाद एक प्रेस वार्ता में अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि उन्होंने एक प्रस्ताव पारित किया है, जिसमें राष्ट्रीय कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और हाईकमान को अपने विवेक से प्रदेश कांग्रेस कार्यसमिति में बदलाव या फेरबदल करने की अनुमति दी गई है।
जब उनसे पूछा गया कि क्या उन्होंने प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है, तो अधीर ने कहा, "मैं अंतरिम प्रदेश अध्यक्ष हूं। जिस दिन खड़गे ने अखिल भारतीय अध्यक्ष का पद संभाला, पार्टी के नियमों के अनुसार सभी प्रदेश अध्यक्षों का कार्यकाल अंतरिम हो गया।" गौरतलब है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस राज्य में सिर्फ एक सीट ही जीत सकी थी। पार्टी ने दूसरा प्रस्ताव भी पारित किया जिसमें राहुल गांधी को लोकसभा में विपक्ष का नेता बनाने की मांग की गई है। यह प्रस्ताव पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और राहुल गांधी को भेजा गया है। हालाँकि, लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद से ही कांग्रेस के कई नेता, राहुल गांधी से ये पद स्वीकार करने का आग्रह कर रहे हैं, लेकिन उनकी तरफ से कोई स्पष्ट जवाब नहीं आया है। पिछली बैठक में भी उन्होंने कहा था कि, उन्हें सोचने के लिए वक़्त चाहिए, वे बाद में फैसला लेंगे।
आखिर प्रधानमंत्री को सीधी चुनौती देने का पद क्यों नहीं लेना चाहते राहुल गांधी ?
बता दें कि, देश में प्रधानमंत्री के बाद विपक्ष का नेता एक बहुत बड़ा पद होता है, जिसे कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया जाता है। भाजपा के दिग्गज नेता अटल बिहारी वाजपाई प्रधानमंत्री बनने से पहले कई बार विपक्ष के नेता रह चुके थे, इससे सरकार के करीब रहकर उसके कामकाज को समझने में भी मदद मिलती है। लेकिन, पार्टी सूत्रों का कहना है कि, कांग्रेस सांसद राहुल गांधी, जिनसे 18वीं लोकसभा में विपक्ष के नेता की जिम्मेदारी संभालने की उम्मीद की जा रही थी, वह इस पद को लेने के इच्छुक नहीं हैं। इससे एक सवाल ये भी उठता है कि, क्या गांधी परिवार के वंशज जिम्मेदारी से भाग रहे हैं, क्योंकि, इतिहास बताता है कि, इस परिवार से सीधे प्रधानमंत्री ही बनते हैं। यदि गठबंधन को इस चुनाव में जीत मिलती और राहुल गांधी को प्रधानमंत्री का पद ऑफर किया जाता, तो क्या वे इतनी देर लगाते ? कांग्रेस के अघोषित प्रधानमंत्री उम्मीदवार तो वे ही हैं, किन्तु वे सदन में विपक्ष का नेता बनकर पूरे विपक्ष की आवाज़ उठाना क्यों नहीं चाह रहे हैं ? जिससे उनकी स्वीकार्यता और बढ़ सकती है।
इस पद से राहुल गांधी को कैबिनेट रैंक मिलता, प्रधानमंत्री मोदी को सीधी चुनौती देने की शक्ति मिलती, INDIA गठबंधन में सहयोगी दलों के साथ बेहतर समन्वय स्थापित करने में मदद मिलती और लोकसभा में अपनी उपस्थिति बढ़ाकर कांग्रेस को मजबूत छवि पेश करने में मदद मिलती। हालाँकि, इससे राहुल गांधी का काम भी बढ़ जाता, जिनकी लोकसभा में उपस्थिति पिछले पांच सालों में महज 51 फीसद रही है। ऐसे में सदन से ही गैर मौजूद रहने वाला नेता, विपक्ष का नेता कैसे बन सकता है। अब सूत्रों का कहना है कि राहुल गांधी, जिन्होंने 2019 में हार के बाद पार्टी प्रमुख के पद से भी इस्तीफा दे दिया था, इस पद के लिए उत्सुक नहीं हैं। उल्लेखनीय है कि, लोकसभा चुनाव के दौरान राहुल गांधी, पीएम मोदी को बहस के लिए लगातार चुनौती दे रहे थे, लेकिन अब उन्हें वो पद मिल रहा है, जिसमे वे हर मुद्दे पर प्रधानमंत्री के सामने खड़े हो सकते हैं, तो वे लेने में आनाकानी कर रहे हैं। इस पद पर रहकर वे ED-CBI जैसी संस्थाओं के प्रमुख के चयन में भी योगदान दे सकते हैं, जिनकी वे अक्सर आलोचना करते रहते हैं।
क्या होता है LoP का पद ?
LoP एक कैबिनेट स्तर का पद है, जिसका काफी प्रभाव होता है, जिसके धारक को कैबिनेट मंत्री के समान वेतन, भत्ते और सुविधाएं मिलती हैं। LoP संसद में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जो ED और CBI जैसी केंद्रीय एजेंसियों के प्रमुखों का चयन करने वाली प्रमुख समितियों का हिस्सा होता है और केंद्रीय सूचना आयोग और केंद्रीय सतर्कता आयोग के प्रमुखों के चयन में सहायता करता है। दरअसल, दस साल पहले, जब कांग्रेस लोकसभा में 44 सीटों पर सिमट गई थी, जो विपक्ष के नेता के लिए अर्हता प्राप्त करने के लिए 10% सीटों (54 सांसदों) की आवश्यकता को पूरा करने में विफल रही। नतीजतन कांग्रेस विपक्ष के नेता का दर्जा भी हासिल नहीं कर पाई। बाद की लोकसभा में, कांग्रेस ने थोड़ा बेहतर प्रदर्शन किया, लेकिन फिर भी 52 सीटें आईं और फिर विपक्ष बनने से चूक गई। इस बार अधीर रंजन चौधरी लोकसभा में कांग्रेस के नेता बने, लेकिन आधिकारिक तौर पर विपक्ष के नेता नहीं बने। 2019 में कांग्रेस की हार की जिम्मेदारी लेकर राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद तक से इस्तीफा दे दिया था, ये पद उन्हें अपनी माँ सोनिया गांधी से मिला था। हालांकि, इस बार के चुनाव में कांग्रेस ने 99 सीटें हासिल की हैं, जिससे विपक्ष के नेता की नियुक्ति निश्चित है।
कांग्रेस नेता अब राहुल गांधी से विपक्ष के नेता का पद संभालने की विनती कर रहे हैं। अगर वह सहमत होते हैं, तो राहुल गांधी के पास सीधे पीएम नरेंद्र मोदी को चुनौती देने का अधिकार होगा और उन्हें प्रधानमंत्री और लोकसभा अध्यक्ष दोनों के साथ नियमित संपर्क बनाए रखना होगा। रचनात्मक असहमति व्यक्त करने और सत्तारूढ़ पार्टी को जवाबदेह बनाए रखने के लिए विपक्ष के नेता की भूमिका आवश्यक है। अगर राहुल गांधी मना करते हैं, तो अन्य संभावित उम्मीदवारों में शशि थरूर, मनीष तिवारी, केजी वेणुगोपाल और गौरव गोगोई शामिल हैं। दरअसल, पिछली लोकसभा में राहुल गांधी की संसदीय उपस्थिति महज 51 फीसद रही थी, यानी संसद सत्र के आधे समय वे सदन से गायब रहे। कभी यात्रा निकालते रहे, तो कभी विदेश यात्रा पर रहे। यदि वे विपक्ष के नेता बन जाते हैं, तो उन्हें हर संसद सत्र में मौजूद रहना होगा, प्रधानमंत्री और लोकसभा स्पीकर के साथ तालमेल में काम करना होगा, कुल मिलाकर ये एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी का काम होगा। लेकिन, राहुल इसके लिए मानते हैं या नहीं, ये उन पर ही निर्भर है।
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