138 साल की हुई कांग्रेस ! अंग्रेज़ अफसर द्वारा स्थापित पार्टी कैसे बनी 'गांधी परिवार' की राजनितिक पहचान ? पढ़िए किस्सा सियासत का..

138 साल की हुई कांग्रेस ! अंग्रेज़ अफसर द्वारा स्थापित पार्टी कैसे बनी 'गांधी परिवार' की राजनितिक पहचान ? पढ़िए किस्सा सियासत का..
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नई दिल्ली: 28 दिसंबर, 1885 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) की स्थापना के साथ भारत के राजनीतिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय शुरू हुआ। जैसा कि पार्टी अपना 139वां स्थापना दिवस मना रही है, यह राज्य चुनावों में हाल में मिली शिकस्तों से चिह्नित है, जो देश पर सबसे अधिक समय तक शासन करने वाली पार्टी की कमज़ोर होती हालत को दर्शाती है। यह लेख कांग्रेस पार्टी के दिलचस्प इतिहास की पड़ताल करता है कि, कैसे एक ब्रिटिश अधिकारी द्वारा स्थापित की गई पार्टी गांधी परिवार का राजनितिक पर्याय बन गई। आज कांग्रेस ही गांधी परिवार है और गांधी परिवार ही कांग्रेस। 

स्थापना और प्रारंभिक वर्ष:-

कांग्रेस पार्टी की उत्पत्ति स्कॉटलैंड के सेवानिवृत्त IAS अधिकारी एलन ऑक्टेवियन ह्यूम (A O Hume) से हुई है। सामाजिक कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और वकीलों सहित थियोसोफिकल सोसाइटी के 72 राजनीतिक कार्यकर्ताओं के समर्थन से, INC का गठन मुंबई में गोकुलदास तेजपाल संस्कृत कॉलेज में चार दिवसीय सत्र के दौरान किया गया था। 28 दिसंबर, 1885 को आयोजित इस उद्घाटन सत्र में व्योमेश चंद्र बनर्जी ने कार्यवाही की अध्यक्षता की। एक साल बाद दूसरा सत्र कोलकाता में बुलाया गया, जिसकी अध्यक्षता दादाभाई नौरोजी ने की।

वर्षों के दौरान नेतृत्व:-

कांग्रेस पार्टी ने अपने शीर्ष पर कई गतिशील नेताओं को देखा है। महात्मा गांधी, मदन मोहन मालवीय और सुभाष चंद्र बोस से लेकर जवाहरलाल नेहरू तक, नेतृत्व की कमान विभिन्न हाथों से गुज़री। हालाँकि, नेताजी बोस चुनाव जीतने के बावजूद अधिक दिनों तक अध्यक्ष पद पर नहीं रह पाए। चूँकि, नेताजी ने चुनावों में पट्टाभि सीतारमैया को हराया था, जिन्हे महात्मा गाँधी अध्यक्ष पद पर देखना चाहते थे। पट्टाभि की हार को गांधी जी अपनी हार मान बैठे और कांग्रेस में बोस के प्रति असंतोष और असहयोग उत्पन्न हो गया। नेताजी इस बात को भांप चुके थे, बिना पार्टी के सहयोग के वे अध्यक्ष पद पर रहकर भी क्या करते, उन्होंने इस्तीफा दे दिया। ये वो समय था, जब कांग्रेस में अधिकतर फैसले गांधी जी की इच्छा के अनुसार ही होते थे। फिर चाहे कैबिनेट मिशन प्लान 1946  (जो कांग्रेस अध्यक्ष होगा, वही PM होगा) के तहत सरदार वल्लभभाई पटेल को प्रधानमंत्री न बनने देने का ही फैसला क्यों न हो। उस समय गांधी जी, जवाहरलाल नेहरू को अध्यक्ष (पीएम) बनाने के पक्ष में थे, जिसके लिए पूरी कांग्रेस द्वारा सरदार पटेल को दिए गए समर्थन को नज़रअंदाज़ कर दिया गया। उस वक़्त 16 में से 13 कांग्रेस समितियां सरदार पटेल को अध्यक्ष (पीएम) बनाने के पक्ष में थीं, नेहरू के समर्थन में कोई नहीं था, गांधी जी को छोड़कर। आख़िरकार वही हुआ, जो गांधी जी चाहते थे और पटेल ने अपना नाम वापस ले लिया, ताज सजा पंडित नेहरू के सर और वो आज़ाद भारत के पहले पीएम बन गए। यहीं से पार्टी में उस दबदबे की शुरुआत हुई, जो गांधी-नेहरू परिवार को कांग्रेस में लगातार ताकत देता चला गया  

आजादी के बाद, आचार्य कृपलानी पार्टी के पहले अध्यक्ष बने, कुछ अन्य नेताओं के हाथ से गुजरते हुए पार्टी की कमान फिर से गांधी-नेहरू परिवार के हाथ में आ गई और पंडित नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी और राहुल गांधी जैसे नेताओं ने पार्टी की कमान संभाली। सोनिया गांधी सबसे अधिक समय, 19 वर्षों तक पार्टी की अध्यक्ष रहीं। वे 1997 में पार्टी में शामिल हुईं थीं और अगले ही साल 1998 में कांग्रेस के शीर्ष पद पर आसीन हुईं। 2017 तक वे ही कांग्रेस की सर्वेसर्वा रहीं, इसके बाद उन्होंने अपने पुत्र राहुल गांधी को पार्टी की बागडौर सौंप दी, लेकिन 2019 चुनावों में कांग्रेस को मिली शर्मनाक हार से आहत होकर महज दो साल में ही राहुल ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया और कमान फिर से सोनिया के हाथों में आ गईं। 

इस हार के बाद पार्टी में संगठनात्मक परिवर्तन की मांग तेज होने लगी, गुलाम नबी आज़ाद, कपिल सिब्बल जैसे बड़े नेता पार्टी छोड़कर चले गए। ये मांग उठने लगी कि, किसी गैर गांधी को पार्टी का अध्यक्ष बनाया जाए, लेकिन कांग्रेस को बीते कई सालों से गांधी परिवार के भरोसे ही चल रही थी, ये इतना आसान भी नहीं था। आखिरकार, 2022 में  लगभग 24 साल बाद कांग्रेस में अध्यक्ष पद के चुनाव हुए। जिसमे 80 वर्षीय मल्लिकार्जुन खड़गे और लगभग 65 वर्षीय शशि थरूर ने दावेदारी ठोंकी। सियासी जानकारों का मानना था कि थरूर ये चुनाव जरूर जीत जाएंगे, क्योंकि वे ऐसे डायनामिक नेता थे, जो कमज़ोर हो चुकी पार्टी में फिर से जान फूंक सकते थे। लेकिन, आश्चर्यजनक रूप से मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रचंड बहुमत से अध्यक्ष पद का चुनाव जीता, तब पता लगा कि गांधी परिवार ही परदे के पीछे से खड़गे को मदद दे रहा था।  

अध्यक्ष बनने के बाद भी खड़गे खुद कई बार बोल चुके हैं कि, सोनिया गांधी और राहुल गांधी हमारे नेता हैं और उनके बिना पार्टी में कोई फैसला नहीं होगा। आज भी पार्टी के अधिकतर छोटे-बड़े फैसले गांधी परिवार के इशारे पर ही होते हैं। खुद कांग्रेस नेता ही यह मानते हैं कि, पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष चाहे कोई भी हो, लेकिन आज भी कांग्रेस से मतलब गांधी परिवार ही है और गांधी परिवार ही कांग्रेस है

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