लोकसभा चुनाव आने में मात्र कुछ ही महीने शेष बचे हैं, ऐसे में कांग्रेस का एक बयान खासा चर्चा में है। दरअसल, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम ने कहा है कि 2019 के चुनावों में कांग्रेस राहुल को पीएम पद का उम्मीदवार घोषित नहीं करेगी। अब ऐसे में सवाल यह उठता है कि जो कांग्रेस अपने युवराज को देश की सत्ता चलाते देखना चाहती हो, वह अचानक से ही क्यों अपनी मंशा से पलटने लगी? इसका जवाब यही है कि राहुल की दावेदारी को लेकर कांग्रेस के नेतृत्व में बने यूपीए में ही मतभेद हैं और कांग्रेस नहीं चाहती कि उसे 2019 के चुनावों में इन मतभेदों से नुकसान उठाना पड़े।
दरअसल, कांग्रेस यह अच्छी तरह जानती है कि वह अकेले अपने दम पर 2019 के चुनावों में पार नहीं पा सकती है। कांग्रेस को पता है कि अगर चुनावों में बीजेपी को हराना है, तो यूपीए के घटक दलों का साथ रहना जरूरी है। इसलिए कांग्रेस अपने अध्यक्ष की पीएम पद की दावेदारी से दूर हट रही है।
दरअसल, हाल ही में जब कांग्रेस पार्टी से राहुल गांधी को पीएम पद का उम्मीदवार बनाए जाने की बात सामने आई थी, तो यूपीए और महागठबंधन में शामिल कुछ पार्टियों ने इसका विरोध किया था। बिहार से राजद नेता तेजस्वी यादव ने इसका विरोध करते हुए कहा था कि अकेले राहुल गांधी ही पीएम पद के उम्मीदवार नहीं हैं। वहीं तृणमूल कांग्रेस नेता ममता बनर्जी हालांकि इस मसले पर शांत हैं, लेकिन वह खुद को आगामी पीएम के तौर पर देखती हैं, यह बात किसी से छिपी नहीं है। वहीं अगर देखा जाए, तो बसपा के नेता पार्टी प्रमुख मायावती को प्रधानमंत्री बनाना चाहते हैं।
इन सब स्थितियों को देखते हुए कांग्रेस को पता है कि अगर उसने इस समय राहुल की दावेदारी पेश की, तो इसका खामियाजा उसे चुनाव में उठाना पड़ सकता है। अगर हम ध्यान दें, तो पाएंगे कि क्षेत्रीय दलों ने कांग्रेस को काफी कमजोर कर दिया है। उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में बिना क्षेत्रीय दलों की मदद के कांग्रेस जीत नहीं सकती। ऐसे में कांग्रेस के सामने केवल एक ही विकल्प बचा था कि वह अपने युवराज की उम्मीदवारी को वापस ले ले, ताकि लोकसभा चुनाव में उसे इन दलों का साथ मिल सके और वह अपनी जीत की राह पर कुछ आगे बढ़ सके।
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