नई दिल्लीः लगातार दूसरी बार लोकसभा चुनाव हारकर पस्त दिख रही कांग्रेस आगामी तीन राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर तैयारियां शुरू कर दी है। इन तीनों राज्यों में उसका सीधा मुकाबला सत्ताधारी बीजेपी से है। कांग्रेस हरियाणा में दस साल और महाराष्ट्र में पंद्रह साल सत्ता में रह चुकी है। इस साल के आखिरी तक हरियाणा, झारखंड और महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव होने हैं। ये चुनाव पार्टी में दोबारा जान फुंकने के लिए अहम है। कांग्रेस इन चुनावों में धारा 370 से इतर रोजगार के गहराते संकट, अर्थव्यवस्था की मंदी से लेकर किसानों की समस्या को मुद्दा बनाने जा रही है। पार्टी को पता है कि सरकार को देशभर से कश्मीर मुद्दे पर समर्थन मिला है।
इस फैसले के तौर-तरीके पर विपक्ष के सवाल उठाने को भाजपा और सरकार ने इसके विरोध के रुप में प्रचारित किया है। कांग्रेस के कुछ नेताओं के बयान और इस मुद्दे पर पार्टी के भीतर सामने आए खुले मतभेद से भी गलत संदेश गया है। जबकि अनुच्छेद 370 हटाने के बड़े फैसले के साथ तीन तलाक कानून को हकीकत बनाने के केंद्र के कदमों ने राष्ट्रीय बहस की धारा बदल दी है। कांग्रेस के चुनावी थिंक-टैंक से जुड़े एक रणनीतिकार ने स्वीकार किया कि भले इन तीनों सूबों के चुनाव का धारा 370 से सीधे कोई सरोकार नहीं है।
बावजूद इसके विधानसभा चुनाव को राष्ट्रवाद के ट्रैक से जनता के मुद्दे पर ले जाने की विपक्षी दलों की राह आसान नहीं। खासकर तब जब महाराष्ट्र में एनसीपी और कांग्रेस दोनों पार्टियों के बीच जबरदस्त अंदरूनी खलबली मची है और दोनों पार्टियों के कई बड़े नेता भाजपा या शिवसेना को अपना नया घर बना रहे हैं। हरियाणा में कांग्रेस बमुश्किल चुनाव से पहले अपने अंदरूनी झगड़े को थामने का फार्मूला ला पायी है। वहीं झारखंड में कांग्रेस और झामुमो के बीच गठबंधन को लेकर खींचतान का दौर चल रहा है। इसलिए पार्टी को लगता है कि वह सरकार को आर्थिक मंदी के बीच रोजगार के घटते अवसरों और कृषि क्षेत्र की समस्याओं के मुद्दे पर अच्छे से घेर सकती है।
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