हार की समीक्षा करने बैठी थी कांग्रेस, आपस में भिड़े पदाधिकारी, जमकर चले लात-घूंसे

हार की समीक्षा करने बैठी थी कांग्रेस, आपस में भिड़े पदाधिकारी, जमकर चले लात-घूंसे
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रांची: झारखंड विधानसभा चुनाव में धनबाद जिले की तीन महत्वपूर्ण सीटों—झरिया, बाघमारा और धनबाद पर कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा। इन नतीजों के बाद धनबाद के उत्सव भवन में हार के कारणों की समीक्षा के लिए एक बैठक आयोजित की गई, लेकिन यह बैठक पार्टी के भीतर गुटबाजी और आंतरिक कलह का मैदान बन गई।  

बैठक के दौरान पार्टी के दो पदाधिकारी आपस में भिड़ गए। बहस इतनी बढ़ी कि दोनों पक्षों ने एक-दूसरे पर हाथापाई शुरू कर दी। हालात बेकाबू होते देख अन्य कार्यकर्ताओं ने बीच-बचाव कर स्थिति को संभालने की कोशिश की। यह शर्मनाक घटना वहां लगे सीसीटीवी कैमरे में भी रिकॉर्ड हो गई।  झारखंड विधानसभा चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) की अगुवाई वाले इंडिया ब्लॉक ने 81 सदस्यीय विधानसभा में 56 सीटों पर जीत दर्ज की, जबकि कांग्रेस 16 सीटों के साथ गठबंधन में दूसरे स्थान पर रही। बहुमत के लिए आवश्यक 41 सीटों का आंकड़ा जेएमएम और सहयोगी दलों ने आसानी से पार कर लिया।   

हालांकि, चुनावी परिणाम कांग्रेस के लिए निराशाजनक रहे, खासकर धनबाद जैसे क्षेत्रों में। पार्टी के प्रदर्शन में गिरावट का कारण उसकी आंतरिक गुटबाजी और कमजोर रणनीति मानी जा रही है। जिस गुटबाजी ने कांग्रेस को चुनावी हार का सामना कराया, वही हार की समीक्षा बैठक में भी उजागर हो गई। जेएमएम के 34 विधायकों के साथ बहुमत के करीब पहुंचने के बाद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने राज्यपाल से मिलकर सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया। कांग्रेस ने इस गठबंधन सरकार में डिप्टी सीएम पद की मांग की थी, लेकिन जेएमएम ने इसे ठुकरा दिया। अब कांग्रेस चार मंत्री पद हासिल करने के लिए जेएमएम के साथ वार्ता कर रही है।  

झारखंड में कांग्रेस की स्थिति कमजोर हो गई है। गठबंधन में उसकी बार्गेनिंग पावर सीमित नजर आ रही है। जानकार इसे जम्मू-कश्मीर की तरह कांग्रेस की गिरती राजनीतिक स्थिति का संकेत मान रहे हैं। वहां भी पार्टी की भूमिका केवल एक सहायक दल की रह गई थी।  जेएमएम के 34 और राजद के 4 विधायकों के साथ इंडिया ब्लॉक के पास कुल 56 विधायक हैं। यदि कांग्रेस के 16 विधायकों को हटाकर गणना की जाए, तो भी गठबंधन बहुमत के आंकड़े से केवल एक कदम दूर है। यह स्थिति कांग्रेस की सत्ता में भूमिका को और कमजोर करती है।  

झारखंड में कांग्रेस की हार और उसके बाद की घटनाओं ने न केवल पार्टी की कमजोर संगठनात्मक स्थिति को उजागर किया है, बल्कि यह भी दिखाया है कि गुटबाजी और आंतरिक कलह किस तरह पार्टी के लिए आत्मघाती साबित हो सकती है।

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