नई दिल्ली: कोरोना महामारी के दौरान जेलों में भीड़ कम करने के लिए फ़ौरन पैरोल और जमानत देने के मामले पर सर्वोच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति एमआर शाह के नेतृत्व वाली बेंच ने यह स्पष्ट कर दिया है कि कोरोना के दौरान कैदियों को मेरिट के आधार पर नहीं बल्कि आपातकालीन पैरोल और जमानत दी गई थी. इसे अब और आगे नहीं बढ़ाया जाएगा. उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी का दौर ख़त्म हो चुका है. उन्हें सरेंडर करना होगा और नियमित जमानत के लिए याचिका दाखिल करनी होगी.
वहीं, वकीलों की ओर से एक मुद्दा यह भी उठाया गया कि क्या कोरोना संकट के दौरान दी गई पैरोल को जेल की अवधि में दी जाने वाली पैरोल के हिस्से के तौर पर गिना जाना चाहिए, क्योंकि कुछ राज्य इसको पैरोल का हिस्सा मान रहे हैं, जबकि दिल्ली और तमिलनाडु जैसे कुछ सूबे इसको पैरोल का हिस्सा मानने से इनकार कर रहे हैं. इस पर न्यायमूर्ति शाह ने टिप्पणी करते हुए कहा कि दिल्ली एक अनूठी जगह है. वह कुछ कर सकती है?
हालांकि, जस्टिस शाह ने यह कहा कि हम इस मुद्दे पर विचार कर सकते हैं कि पैरोल किस लिए है? उन्होंने कहा कि हमें इस पैरोल के कानूनी पहलू पर विचार करना होगा, क्योंकि पेरोल, फर्लो की तरह अधिकार का विषय नहीं हो सकता. उन्होंने एक दूसरे मामले में दिए गए फैसले का उल्लेख करते हुए कहा कि हमने अपने फैसले में इस बात को नोट किया कि ज्यादातर राजनेता अपनी सजा के दौरान पैरोल पर ही रहते हैं. ऐसे में यह तथ्य बचता हैं कि आप पैरोल पर आप बाहर थे. ऐसी स्थिति में वास्तव में आप जेल के भीतर नहीं थे. हालांकि, अदालत इस मुद्दे पर बाद में विचार कर सकता है.
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