वर्तमान परिस्थिति में नक्सलवाद को भारत की सबसे बड़ी आंतरिक सुरक्षा खतरों में से एक माना जाता है. वर्तमान महामारी और उसके बाद लॉकडाउन के प्रकोप ने नक्सलियों को अलग-अलग तरीके से प्रभावित किया है. इस दौरान इनकी भी खाद्य एवं अन्य आवश्यक वस्तुओं की आपूíत प्रभावित हुई है. वामपंथी उग्रवाद प्रभावित सभी राज्यों में माओवादी-नक्सली जैसे अराजक तत्व अपने लिए राशन और अन्य आवश्यक वस्तुओं की खरीद मुख्य रूप से गांव-स्तर के हाट बाजारों से ही करते हैं. इन हाट बाजारों के अस्थायी रूप से बंद होने के कारण फिलहाल वे खाद्य आपूर्ति की भयावह कमी का सामना कर रहे हैं.
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आपकी जानकारी के लिए बता दे कि लॉकडाउन की स्थिति ने माओवादियों की हताशा को बढ़ा दिया है और वे अपने मकसद को पूरा करने के लिए ग्रामीणों का शोषण कर रहे हैं. माओवादियों ने कथित तौर पर आंध्र प्रदेश और ओडिशा में इस महीने की शुरुआत में एकतरफा संघर्ष-विराम की पेशकश की थी, खासकर आंध्र-ओडिशा बॉर्डर स्पेशल जोनल कमेटी के तहत आने वाले क्षेत्रों में. माओवादियों का यह कहना है कि कोविड-19 से लड़ने के लिए अपने मूल क्षेत्रों में सरकार के राहत कार्यो को सुविधाजनक बनाने के लिए उन्होंने ऐसा किया है, लेकिन यह माना जा रहा है कि यह प्रस्ताव अवसरवादी और भ्रामक है.
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इस परिस्थिति में वास्तविकता यह है कि वे अपने लिए जरूरी सामग्रियों की आपूर्ति का रास्ता खोल कर रखना चाहते हैं ताकि उन्हें किसी चीज की दिक्कत न हो. संकट सिर पर मंडराता देख ये उग्रवादी भले ही संघर्ष-विराम की पेशकश कर चुके हों, लेकिन बीते माह के दौरान घटित अनेक घटनाएं यह दर्शाती हैं कि इनके इरादे नहीं बदले हैं. ऐसे में नक्सलवाद को समाप्त करने के लिए केंद्र सरकार को एक सुसंगत राष्ट्रीय रणनीति को लागू करने की आवश्यकता है. नक्सल नेताओं और संबंधित सरकारी अधिकारियों के बीच निरंतर संवाद कायम करने से इस समस्या का समाधान तलाशा जा सकता है.
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