महामारी कोरोना से जिंदगी बचाने के लिए छिड़ी जंग के बीच उत्तर प्रदेश की सियासत दंगल बन चुकी है. प्रवासी श्रमिक-कामगारों की हिमायत में यूपी सरकार को ललकारते हुए कांग्रेस मैदान में आई तो सरकार भी ताल ठोंककर मैदान में है. कांग्रेस की तरफ से उनकी तुरुप का इक्का कही जाने वाली राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका वाड्रा तो सरकार की ओर से खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मोर्चे पर हैं. दोनों ओर से तुर्रा यही कि ये राजनीति का वक्त नहीं है और दोनों ओर से दांव ऐसे कि कुशल राजनीतिज्ञ भी दांतों तले अंगुली दबा लें.
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आपकी जानकारी के लिए बता दे कि प्रवासी श्रमिक-कामगारों के लिए बसों की पेशकश से प्रियंका वाड्रा ने सियासत का यह सफर शुरू किया और तीखे सवालों के कांटे राह में बिछाते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बसों को हरी झंडी दे दी. ये हजार बसें एक मकसद का साधन मात्र हैं या वाकई श्रमिकों को मंजिल तक पहुंचाएंगी, यह सामने आना अभी बाकी है.
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अगर आपको नही पता तो बता दे कि प्रवासी श्रमिक और कामगारों को हो रही परेशानियों पर विपक्ष सवाल तो लगातार उठा रहा है, लेकिन औरैया हादसे के बाद घेराबंदी की इस सियासत की स्टीयरिंग कांग्रेस ने मजबूती से थाम ली. कांग्रेस की प्रभारी महासचिव प्रियंका वाड्रा ने यूपी की योगी सरकार को बसों की व्यवस्था में अक्षम बताते हुए कांग्रेस की ओर एक हजार बसें चलाने की अनुमति मांगी. रविवार को राजस्थान से बसें मंगवाकर यूपी बॉर्डर पर खड़ी भी करा दीं. फिर वीडियो वायरल कर संदेश प्रसारित कराया कि हमारी बसें श्रमिक-कामगारों को ले जाने के लिए तैयार हैं, लेकिन सरकार अनुमति नहीं दे रही.
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