नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काम में लापरवाही और भ्रष्टाचार को लेकर सरकारी अधिकारियों पर सख्त रुख अपनाया है। उन्होंने केंद्रीय सचिवों को निर्देश दिया है कि वे कर्मचारियों के प्रदर्शन का कड़ाई से मूल्यांकन करें और यदि कोई अधिकारी अपने काम में अक्षम पाया जाता है या भ्रष्टाचार में लिप्त है, तो उसे समय से पहले रिटायर करने के विकल्प पर विचार करें।
पीएम मोदी ने हाल ही में सभी केंद्रीय मंत्रियों और सचिवों के साथ बैठक में सीसीएस (पेंशन) नियमों के तहत नियम 56 (जे) का हवाला दिया, जो सरकारी अधिकारियों को सार्वजनिक हित में समय से पहले रिटायर करने का प्रावधान देता है। यह नियम सरकारी अधिकारियों को 55 साल की उम्र के बाद प्रभावित कर सकता है, और इसके तहत जबरन रिटायरमेंट के मामले में सरकार को तीन महीने का नोटिस या तीन महीने का वेतन और भत्ता देना होता है। इसके अतिरिक्त, नियम 48 में यह भी प्रावधान है कि 30 साल की सेवा पूरी करने के बाद सरकार किसी कर्मचारी को सार्वजनिक हित में रिटायर कर सकती है। प्रधानमंत्री ने अधिकारियों को यह भी बताया कि रिटायरमेंट से पहले अधिकारियों को अपनी बात रखने का मौका मिलता है और वे अपने खिलाफ लिए गए निर्णय को अदालत में चुनौती दे सकते हैं। सरकारी विभागों ने इन नियमों का उपयोग करते हुए अब तक 500 से अधिक अधिकारियों को अनिवार्य रिटायरमेंट दी है। अधिकारियों का मानना है कि मौजूदा व्यवस्था में बदलाव की जरूरत है, क्योंकि वर्तमान स्क्रीनिंग प्रणाली कर्मचारियों की रैंकिंग के बजाय बेंचमार्क पर आधारित है।
प्रधानमंत्री ने मंत्रियों और सचिवों से कहा कि सुशासन और विकास के प्रयासों को लोग सराहते हैं। उन्होंने हरियाणा में बीजेपी की हैट्रिक और जम्मू-कश्मीर में अच्छे प्रदर्शन का उल्लेख किया। मोदी ने जन शिकायतों के त्वरित समाधान पर जोर दिया और अधिकारियों से कहा कि वे फाइलों को एक डेस्क से दूसरे डेस्क पर न भेजें, बल्कि समस्याओं का समाधान करें। मोदी ने सुझाव दिया कि हर हफ्ते एक दिन शिकायतों के समाधान के लिए निकाला जाए और राज्य मंत्री उनकी निगरानी करें। उन्होंने यह भी बताया कि पिछले 10 सालों में प्रधानमंत्री कार्यालय (PMO) को लोगों से 4.5 करोड़ शिकायतें मिलीं, जबकि मनमोहन सिंह के कार्यकाल के अंतिम 5 वर्षों में केवल 5 लाख शिकायतें आई थीं।
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