भ्रष्टाचार, तुष्टिकरण और घुसपैठ..! क्या सोरेन सरकार को ले डूबेंगे ये 3 अहम मुद्दे ?

भ्रष्टाचार, तुष्टिकरण और घुसपैठ..! क्या सोरेन सरकार को ले डूबेंगे ये 3 अहम मुद्दे ?
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रांची: आगामी झारखंड चुनाव सत्ताधारी झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) और भारतीय जनता पार्टी (BJP) दोनों के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। हेमंत सोरेन की सरकार पर भ्रष्टाचार और तुष्टिकरण की राजनीति के आरोप लग रहे हैं, जो चुनावी नतीजों पर असर डाल सकते हैं। इन मुद्दों ने JMM के समर्थन आधार, खासकर आदिवासी समुदायों के बीच विश्वास को कमजोर कर दिया है, जो पारंपरिक रूप से इसका प्रमुख मतदाता समूह रहा है।

 

हेमंत सोरेन सरकार पर सबसे बड़ा आरोप भूमि घोटालों से जुड़ा है। प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा की जा रही जांच में अवैध भूमि सौदों का पर्दाफाश हुआ है, जिसमें कानूनी रूप से गैर-बिक्री योग्य जमीनों को बेचने की कोशिश की गई है। झारखंड जैसे राज्य में, जहां भूमि और संसाधनों का प्रबंधन खासकर आदिवासियों के लिए संवेदनशील मुद्दा है, इन घोटालों ने JMM की छवि को बुरी तरह प्रभावित किया है। हेमंत सोरेन की सरकार में मंत्री रहे कांग्रेस नेता आलमगीर आलम के नौकर जहांगीर के घर से 37 करोड़ कैश भी मिले थे, जो कांग्रेस नेता के ही थे। इसके बाद आलमगीर को मंत्री पद छोड़ना पड़ा था। वहीं, झारखंड में अवैध बालू खनन भी जोरों पर है। इसी झारखंड में कांग्रेस सांसद धीरज साहू के घर से 350 करोड़ कैश मिले थे। झारखंड में चल रही झामुमो-कांग्रेस-राजद गठबंधन की सरकार और उसके नेता बीते चार वर्षों में भ्रष्टाचार के कई गंभीर आरोपों में घिरे हैं। 1200 करोड़ का खनन घोटाला, मनरेगा घोटाला, माइनिंग लीज का अवैध आवंटन, कोल लिंकेज स्कैम, सेना और आदिवासियों की जमीन के घोटाले की आंच सीधे मुख्यमंत्री कार्यालय (CMO) तक पहुंची है, जिसमे बड़े नेताओं के नाम सामने आए हैं, लेकिन झारखंड सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की। 

इन घोटालों और भ्रष्टाचार ने सरकार की पारदर्शिता पर सवाल उठाए हैं और पार्टी के मूल सिद्धांतों के साथ विश्वासघात का प्रतीक बन गया है। विपक्षी पार्टियां, खासकर भाजपा, इस मुद्दे का फायदा उठाकर JMM को नैतिक रूप से विफल सरकार के रूप में पेश कर रही हैं। इसके साथ ही, JMM पर तुष्टिकरण की राजनीति के आरोप भी लग रहे हैं। अल्पसंख्यक समुदायों को खुश करने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदम, जैसे धार्मिक उद्देश्यों के लिए भूमि अतिक्रमण की अनुमति, राज्य की स्वदेशी आबादी में आक्रोश पैदा कर रहे हैं। विशेष रूप से हजारीबाग और सिमडेगा जैसे जिलों में चर्च, कब्रिस्तान और अन्य धार्मिक ढांचों के अवैध निर्माण की खबरों ने आदिवासी समुदायों में तनाव को बढ़ा दिया है। जाहेरथान की पवित्र भूमि पर कब्रिस्तानों के निर्माण की कोशिश ने आदिवासियों की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान पर आघात किया है, जिससे JMM के लिए समर्थन घटता दिख रहा है। झारखंड में बढ़ती बांग्लादेशी घुसपैठ से हाई कोर्ट भी चिंतित है, लेकिन वोट बैंक के तुष्टिकरण में सोरेन सरकार घुसपैठियों के खिलाफ कोई मजबूत कदम नहीं उठा रही है। कई जिलों में आदिवासियों की आबादी में बड़ी गिरावट दर्ज की गई है, वहीं मुस्लिम और ईसाई आबादी में कई गुना इजाफा हुआ है, जिससे राज्य की डेमोग्राफी बदल गई है। 

 

पूर्व सीएम बाबूलाल मरांडी कई बार ये मुद्दा उठा चुके हैं कि झारखंड में प्रतिबंधित कट्टरपंथी संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ़ इंडिया (PFI) के सदस्य आदिवासी लड़कियों को फंसकर शादी कर रहे हैं और उनकी जमीनें हड़प रहे हैं, लेकिन वोट बैंक के कारण झारखंड में आदिवासी सीएम होते हुए भी कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। बाबूलाल मरांडी ने एक वीडियो भी शेयर किया था, जिसमे अवैध बांग्लादेशी, आदिवसियों को सरेआम धमकाते हुए नज़र आ रहे थे और कह रहे थे कि तुम्हारा जीना हराम कर देंगे। 

 

BJP इन मुद्दों को चुनावी प्रचार में जोर-शोर से उठाते हुए खुद को एक स्वच्छ और जवाबदेह शासन के विकल्प के रूप में प्रस्तुत कर रही है। भाजपा का "मिला क्या?" अभियान, जो सोरेन सरकार की उपलब्धियों और अधूरे वादों पर सवाल उठाता है, ग्रामीण इलाकों में लोकप्रिय हो रहा है। पार्टी तुष्टिकरण की नीतियों की आलोचना कर आदिवासी मतदाताओं को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रही है, जो JMM के कार्यों से नाराज महसूस कर रहे हैं। 

झारखंड के चुनावी परिदृश्य में भ्रष्टाचार, तुष्टिकरण और आदिवासी अधिकारों के मुद्दों पर भाजपा और JMM के बीच कड़ी टक्कर देखने को मिल सकती है। यदि भाजपा इन मुद्दों का सही तरीके से फायदा उठाती है, तो राज्य की राजनीति में बड़ा बदलाव आ सकता है, जिससे JMM की स्थिति कमजोर हो सकती है।

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