नेशनल हॉस्पिटल में कोरोना पीड़ितों के साथ हो रही है लूट, आईएएस व अन्य बड़े अफसर भी हुए शिकार

नेशनल हॉस्पिटल में कोरोना पीड़ितों के साथ हो रही है लूट, आईएएस व अन्य बड़े अफसर भी हुए शिकार
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सरकार ने नगर के अनेक हॉस्पिटल को कोरोना इलाज के लिए घोषित किया है। प्राइवेट हॉस्पिटल के लिए सरकार ने रेट भी तय कर दिए हैं। रेट तय हो जाने के बाद भी कुछ प्राइवेट हॉस्पिटल में कोरोना पीड़ितों के इलाज के लिए लाखों का बिल भी चार्ज किया जा रहा है। अरेरा कालोनी में स्थित नेशनल हॉस्पिटल का हमें एक मरीज़ का बिल प्राप्त हुआ है, जिसकी मृत्यु के बाद उसके परिवार से 22 लाख से अधिक की राशि वुसूल करने के बाद ही डेड बॉडी सौंपी गई। जंहा इस बात का पता चला है कि नसीमुद्दीन 2 अप्रैल को नेशनल हॉस्पिटल E-3/61 अरेरा कॉलोनी में कोरोना इलाज के लिए भर्ती हुए, 21 अप्रैल को उनकी मृत्यु हो गई। हॉस्पिटल ने 22,21,578/- रुपये का बिल उनके परिवार को थमा दिया , जब तक बिल का भुगतान नहीं हो गया हॉस्पिटल प्रबंधन ने बॉडी नहीं दी।      

इस बिल को देख कर भी हैरानी होती है। बिल में मरीज़ को ,10,52,781/-  रुपये की 20 दिन में दवाएं दे दी गईं, परन्तु बिल में दवाओं का कोई उल्लेख नहीं है। बिल में 7,39,200/-  रुपये Severe Critical Life Saving Organ Support  के लिए चार्ज किये गए हैं जबकी Ventilator  के लिए भी  2,38,600/- रुपये अलग से चार्ज किये गए हैं। जिसके अतिरिक्त  जांचों के लिए 1,52,781/- रुपये चार्ज किये गए हैं। डॉ विवेक राजोरिया को 35,650 रुपये देने का उल्लेख बिल में किया गया है। यानी कोरोना मरीज़ के 20 दिन इलाज के लिए हॉस्पिटल ने 22 लाख से अधिक चार्ज किया, दवाओं का कोई बिल अलग से नहीं दिया गया।  इसी नेशनल हॉस्पिटल में IAS मसूद अख्तर की भी मृत्यु हुई थी जिनके इलाज के लिए जब तक 18 लाख के बिल का भुगतान नहीं हो गया प्रशासनिक हस्तक्षेप के बाद भी 2 दिन तक डेड बॉडी नहीं दी गई थी। 

इंदौर मीडिया के अनुसार कोरोना पीड़ित मुख्य सचिव श्री इक़बाल सिंह बैंस भी हॉस्पिटल प्रबंधन के रवैये के शिकार हो कर इलाज के दौरान बीच में ही हॉस्पिटल छोड़ कर किसी अन्य हॉस्पिटल चले गए। दो और IAS राधे श्याम जुलानिया, ओर फ़ैज़ किदवई व अन्य अधिकारी भी हॉस्पिटल के क्रूर रवैये के शिकार हुए हैं। जब मुख्य सचिव स्तर के अधिकारी के साथ हॉस्पिटल का यह रवैया है तो आम जनता के साथ हॉस्पिटल प्रबन्धन का क्या व्यवहार रहता होगा। इस सब के बाद भी शासन प्रशासन की चुप्पी आश्चर्यजनक है। ऐसी खबरें भी हैं जब तक मरीज़ द्वारा इलाज के लिए 1-2 लाख जमा नहीं कर दिए जाते इलाज शुरू ही नहीं किया जाता। ऐसा लगता है इस हॉस्पिटल में इस महामारी से हॉस्पिटल प्रबंधन को  "आपदा" से  "अवसर" प्राप्त हो गया है जिसमें मानवता पूरी तरह से समाप्त हो गई है। 

खबर यह भी है अस्पताल प्रबंधन सत्ता और सरकार द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की जाती हैजबकि सरकार द्वारा ही कोविड इलाज के लिए निर्धारित रेट से अधिक खुल्लम खुल्ला मनमाने पैसे वुसूल करने के बाद भी सरकार द्वारा कोई कार्यवाही नहीं किया जाना इसकी पुष्टि करता है। जानकारी के अनुसार यह अस्पताल हरदा निवासी श्री राजेश पांडेय का है। अस्पताल का नाम भी वैधानिक तोर पर नेशनल नहीं रखा जा सकता। नेशनल से सरकारी होने का आभास होता है। सोसाइटी रजिस्ट्रेशन एक्ट 1973 के अंतर्गत रजिस्ट्रेशन के लिए किसी भी NGO का नाम नेशनल, भारत या राज्य के नाम पर रजिस्ट्रेशन नहीं किया जाता है। हमारा सरकार से अनुरोध है नेशनल अस्पताल की लूट से कोविड मरीजों को बचाया जाए तथा नेशनल अस्पताल में भी कोविड के इलाज के लिए निर्धारित रेट ही चार्ज किये जाने के लिए आवश्यक कार्यवाही की जाए। स्वर्गीय नसीमुद्दीन का परिवार भी लॉक डाउन के बाद उच्च न्यायालय में कार्यवाही करने पर विचार कर रहा है।

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