नई दिल्ली: आम आदमी पार्टी (AAP) के सुप्रीमो और दिल्ली के पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल इस वक़्त चुनावी मोड में हैं। वे लगातार चौथी बार दिल्ली के सीएम बनने के लिए वोटर्स को रिझाने में जुट गए हैं । कभी वे घर-घर जाकर महिलाओं से महिला सम्मान योजना के फॉर्म भरवाकर उन्हें 2100 रूपए प्रतिमाह देने का वादा कर रहे हैं । तो कभी बुजुर्ग वोटर्स को अपनी तरफ करने के लिए 60 वर्ष से अधिक उम्र वाले लोगों को मुफ्त इलाज देने के लिए संजीवनी योजना का ऐलान कर रहे हैं।
इसी क्रम में उन्होंने हाल ही में एक और बड़ा ऐलान किया है। इस बार उनके निशाने पर पुजारी और ग्रंथि वर्ग रहा। अरविन्द केजरीवाल ने पुजारियों और ग्रंथियों को 18000 रूपए प्रतिमाह वेतन देने का ऐलान कर दिया है। उन्होंने कहा है कि अगर दिल्ली में फिर से AAP की सरकार बनती है, तो पुजारियों और ग्रंथियों को हर महीने पैसे दिए जाएंगे। हालाँकि, इसकी मांग काफी पहले से उठ रही थी, क्योंकि बहुत पहले से दिल्ली के इमामों को 18000 रूपए प्रतिमाह और मुअज्जिनों को 14000 रूपए प्रतिमाह दिए जा रहे हैं। इसी को देखते हुए पुजारियों और ग्रंथियों को मानदेय देने की भी मांग उठी थी, लेकिन इसका कोई जवाब नहीं मिला था ।
अब चुनावी मौसम में अरविंद केजरीवाल ने पुजारियों -ग्रंथियों को वेतन देने का वादा करके बड़ा कार्ड चल दिया है। हालाँकि, इसमें कुछ समस्याएं भी हैं, वो ये कि दिल्ली सरकार बीते 17 महीनों से इमामों-मुअज्जिनों को ही वेतन नहीं दे पाई है और पार्टी सुप्रीमो पुजारियों-ग्रंथियों को पैसा देने का ऐलान कर रहे हैं। अगर दिल्ली सरकार के पास पैसा है, तो वो पहले प्रदर्शन कर रहे इमामों-मुअज्जिनों को वेतन दे, और अगर खज़ाना खाली है, तो पुजारियों-ग्रंथियों को वेतन देने का वादा कैसे पूरा किया जाएगा ?
दिल्ली सरकार की महिला सम्मान योजना और संजीवनी योजना के साथ ही ये वेतन वाला मुद्दा भी विवादों में घिर गया है। दिल्ली सरकार बीते 17 महीने से वेतन दे नहीं पाई है, और वादा कर रही है कि सत्ता में आने पर और अधिक लोगों को सैलरी देगी, पर कैसे? ये बताने को कोई राज़ी नहीं है। महिला सम्मान योजना की भी पोल तब खुली, जब दिल्ली के ही सरकारी विभाग ने इस संबंध में एक नोटिस जारी किया।
दिल्ली सरकार के आधीन आने वाले महिला एवं बाल विकास विभाग ने बकायदा जाहिर सूचना जारी करते हुए कहा है कि, मुख्यमंत्री महिला सम्मान योजना' नामक कोई योजना सरकार की ओर से अधिसूचित नहीं की गई है। इस योजना के नाम पर 2100 रुपये प्रतिमाह देने का दावा पूरी तरह झूठा है। विभाग ने लोगों को सतर्क करते हुए कहा कि इस योजना के नाम पर चल रहे रजिस्ट्रेशन अभियान धोखाधड़ी हैं।'' अब जनता को समझ नहीं आ रहा है कि वो इस योजना का पंजीकरण करने आ रहे AAP नेताओं को अपनी निजी जानकारी दे या नहीं?
हालाँकि, विभाग ने दिल्ली की जनता से ऐसी किसी भी जानकारी को ना देने की अपील की है। नोटिस में स्पष्ट कहा गया है कि, ''अगर भविष्य में कोई ऐसी योजना आती है तो उसके लिए आधिकारिक डिजिटल प्लेटफॉर्म लॉन्च किया जाएगा। तब तक के लिए लोगों को सलाह दी गई है कि वे अपनी व्यक्तिगत जानकारी जैसे बैंक खाता, वोटर आईडी और फोन नंबर साझा करने से बचें। क्योंकि इन जानकारियों का गलत इस्तेमाल साइबर अपराधी कर सकते हैं।''
इसी तरह का नोटिस संजीवनी योजना के लिए भी जारी हुआ है, उसके बारे में भी दिल्ली के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग द्वारा ठीक यही बातें लिखी गईं हैं। स्वास्थ्य विभाग ने साफ कहा कि ऐसी कोई योजना अस्तित्व में ही नहीं है। विभाग ने बताया कि कुछ अवैध तत्व इस योजना के नाम पर पंजीकरण अभियान चला रहे हैं और लोगों से आधार कार्ड, बैंक खाता जैसे निजी विवरण माँग रहे हैं। साथ ही नकली स्वास्थ्य योजना कार्ड भी बांटे जा रहे हैं। जनता को इस योजना से दूर रहने और अपनी जानकारी साझा न करने की सलाह दी गई है।
यही नहीं, दिल्ली के उपराज्यपाल (LG) के सामने जब इन योजनाओं के फर्जीवाड़े की शिकायत पहुंची, तो उन्होंने इसकी जांच के आदेश जारी कर दिए। डिविजनल कमिश्नर को निर्देश दिए गए हैं कि गैर-सरकारी लोग महिलाओं का निजी डेटा इकट्ठा कर रहे हैं। इस संदर्भ में डेटा गोपनीयता भंग करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करें। अब ये गैर-सरकारी लोग, AAP नेता, AAP कार्यकर्ता या AAP समर्थक ही हो सकते हैं, जो पार्टी की कथित योजनाओं का प्रचार कर रहे हैं, जिन्हे खुद उनसे संबंधित विभाग ही फर्जी बता रहा है ।
एक तरह से केजरीवाल के तमाम चुनावी वादे गोल-मोल नज़र आ रहे हैं, योजनाओं पर कोई आधिकारिक मुहर नहीं है कि योजनाएं सच में हैं भी या नहीं? इमामों को 17 महीने से वेतन नहीं मिला है और पुजारियों-ग्रंथियों को वेतन देने का ऐलान है, इस पर कैसे भरोसा किया जाए ? क्या इसके लिए अब एक कानून की जरुरत नहीं पैदा हो रही है। जो राजनेताओं के चुनावी वादों और मैनिफेस्टो के आधार पर सरकार को जवाबदेह ठहराए और उनके किए हुए वादों को पूरा करने के लिए दबाव डाले। इस तरह तो कोई भी दल, किसी भी तरह का लोकलुभावन और अव्यवहारिक वादा करके सत्ता में आ जाएगा और फिर उसे पूरा करने की कोई जरूरत नहीं रहेगी।
जैसे राहुल गांधी ने लोकसभा चुनाव में हर गरीब महिला को 1 लाख रूपए देने का वादा किया था। राहुल गांधी की नियत इस मामले में चाहे कितनी भी अच्छी रही हो, लेकिन क्या ये व्यावहारिक था? 150 करोड़ की भारतीय आबादी में अगर 25 करोड़ भी गरीब महिलाएं मानी जाएं, तो उन्हें ही साल का 25 लाख करोड़ रूपए चला जाएगा, जबकि 2024 में भारत का बजट ही 48 लाख करोड़ का रहा है, जिसका आधे से ज्यादा तो राहुल के इसी वादे में चला जाता। फिर उन्होंने हर बार किसानों का ऋण माफ़ करने का वादा किया था, जिसमे भी अच्छी खासी रकम जाती। तो फिर रक्षा, स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि, सड़क, रेल, आदि दूसरे बुनियादी ढांचों के लिए धन कहाँ से आता? कर्नाटक में महिलाओं को 1500 प्रतिमाह देने में ही कांग्रेस सरकार का खज़ाना खाली हो चुका है, कर्ज एक लाख करोड़ के पार है, तो फिर 1 लाख सालाना कैसे दिया जाता?
निसंदेह, योजनाएं और नीतियां, सरकार जनता के लिए ही बनाती हैं, ताकि उन्हें लाभ मिले। लेकिन सत्ता के लोभ में जो बिना सर पैर के वादे किए जाने लगे हैं, उनपर लगाम लगना तो स्वस्थ लोकतंत्र के लिए जरूरी है। जनता से ऐसे वादे तो ना किए जाएं, जिसे पूरा ही ना किया जा सके। या फिर संसद या सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में ऐसा कानून बने, जो नेताओं से पूछे कि आप ये करेंगे कैसे? और सत्ता में आने के बाद उन पर दबाव बनाए कि आपने वादा किया था, अब पूरा कीजिए।