आपको बता दे, की भारत देश के लगभग तीस करोड़ आदिवासी एवं अन्य स्थानीय निवासीयो की आजीविका संपूर्णतया वनो पर निर्भर रहती है। यदि बात शहरी क्षेत्रो की हो, तो शहरी क्षेत्रों में भी पेड़-पौधे वातावरण को स्वच्छ रखने में अपनी अहम भूमिका अदा करते है. पेड़-पौधों की महत्वता को जानते हुए समाज में पवित्र ग्रोव्स की परिकल्पना विकसित हुई। जिसमें स्थानीय निवासी अपने क्षेत्र में विकसित ग्रोव्स (पवित्र वन क्षेत्र) का संवद्र्धन एवं संरक्षण गांव वालों की सहभागिता के द्वारा किया जाता है। ऐसे क्षेत्रों में किसी भी प्रकार का आवागमन एवं प्राकृतिक संसाधनों का दोहन वर्जित रहता है। यह इसलिए सम्भव हो पाता है क्योकि वहा रहने वाले स्थानीय लोगो को पेड़ो और वनो से होने वाले पर्यावरण का पूरा ज्ञान होता है. यह परिकल्पना बेहद लम्बे समय से चली आ रही है.
वही आपको बता दे, की देश के विभिन्न राज्यों में ये पवित्र ग्रोव्स अलग-अलग नामों से जाने जाते हैं, लेकिन सबकी परिकल्पना एक समान है। इतना ही नहीं हिंदू धर्म में विभिन्न पेड़ पौधों जैसे- पीपल, बरगद, आम, पलास, मंदार आदि की पूजा की जाती है। जिसके कारण इस प्रकार के पौधों को कम से कम नुकसान पहुंचाया जाता है तथा इनके संवद्र्धन में समाज विशेष योगदान देता रहा है। यदि हम पौधों के बारे में विश्लेषण करें, तो मुख्य रूप से दो श्रेणी के पौधे देखे जा सकते है.
प्रथम श्रेणी तो स्थानीय (देशी) व द्वितीय- बाहरी (विदेशी), इन विदेशी पौधों की हम व्यापारिक आवश्यकता हेतु समय-समय पर देश को परिचित करते रहते हैं। जैसे यूकेलिप्टस, ल्यूसीना प्रासोपिस, एकेलिया ल्योकेसिफेला, एकेसिया मिरांजी, पाइनस पेटूला, केसिया साइमिया (कसोड़) आदि। दूसरे प्रकार के वे विदेशी पौधे हैं, जिनका देश में प्रवेश किसी और माध्यम द्वारा हुआ है। इनमें पाए जाने वाले मुख्यतया लैंटाना, गाजरघास, वन तुलसी आदि। विभिन्न अध्ययनों से यह देखा गया कि इन विदेशी पौधों के रोपण की वजह से जैव विविधता को नुक्सान पहुंच रहा है तथा दूसरी ओर से इन पौधों का स्थानीय लोगों की आजीविका में सहयोग न के बराबर रहता है। यदि देखा जाये तो सम्पूर्ण मानव जाती ही पेड़ पोधो पर आश्रित है. जरुरत है इनका ध्यान उचित तरह से रखा जाये क्योकि हमारा अस्त्तित्व इन पेड़-पोधो के कारण ही संभव है.
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