अपनी जिम्मेदारी समझे न्यायपालिका!

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सुप्रीम कोर्ट के नए मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई ने सुप्रीम कोर्ट के सभ जजों की छुट्टियों पर रोक लगा दी है। दरअसल, चीफ  जस्टिस सुप्रीम कोर्ट में लंबित  पड़े  मामलों से काफी​ चिंतित हैं। इतना ही नहीं उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के कार्य करने के तरीके पर भी अपनी एक टिप्पणी में सवाल खड़े किए हैं। चीफ जस्टिस ने कहा कि कोई भी सुप्रीम कोर्ट आता है और एक आदेश लेकर चला जाता है। यहां पर सवाल यह है कि आखिर मुख्य न्यायाधीश को इस तरह की टिप्पणियां देने की  जरूरत क्यों पड़ी? 

कोर्ट या अदालत वह जगह है, जहां पर इंसान को न्याय की आखिरी उम्मीद होती है, लेकिन इन दिनों कोर्ट का जो रवैया है, वह काफी​ चिंताजनक हो गया है। अकेले सुप्रीम कोर्ट की ही बात करें, तो वहां पर अभी 3 करोड़ मामले लंबित हैं। कुछ मामले तो इनमें से ऐसे हैं, जो कई सालों से लंबित पड़े हैं और  मामले ​जिनसे संबंधित हैं, उनकी अगली पीढ़ी अब इन मामलों को लड़ रही है। कई बार देखने में आया है कि किसी अहम मसले का फैसला आना है, लेकिन तभी उस मसले की सुनवाई करने वाली पीठ में से कोई  जज छुट्टी पर चले गए हैं, तो वह  मसला फिर से टल  जाता है। यानी जिस मामले में न्याय मिलने की उम्मीद की जा रही थी, वह आस टूट जाती है और इंसान फिर न्याय की उम्मीद लगाए न्याय की देवी को देखता रह जाता है।  

इसी तरह यह भी देखने में आया है कि जज, जिन्हें न्यायाधीश कहा जाता है बिना किसी तर्क के केवल किताबी ज्ञान के आधार पर कई फैसले दे देते हैं, जो कि किसी के साथ नाइंसाफी भी साबित हो सकते हैं। कई बार न्याय पाने की उम्मीद में लगे लोग भी कोर्ट के फैसले से खुश नहीं होते और उनका कहना होता है कि कोर्ट ने बिना कुछ जांचे—परखे अपना फैसला सुना दिया है। चीफ जस्टिज गोगोई की टिप्पणियां इन्हीं स्थितियों को परिलक्षित  करती हैं। 

ऐसे में न्यायपालिका को चाहिए कि वह अपनी जिम्मेदारी समझे और लंबित पड़े मामलों को जल्द से जल्द सुलझाए, ताकि न्याय की आस लगाए लोगों की उम्मीद पूरी हो सके। इसके साथ ही जो वकील न्याय की इस प्रक्रिया के साथी हैं, यह उनकी भी जिम्मेदारी बनती है कि वे गैर जरूरी मामले कोर्ट के सामने न ले जाएं, ताकि कोर्ट का समय बर्बाद न हो और ऐसे मामले जिनकी सुनवाई जरूरी है, वह पहले पूरी हो सके। 

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